रचना एक : रचनाकार दो
वासंती कुंडली
दोहा: पूर्णिमा बर्मन
रोला: संजीव वर्मा
*
वसंत-१
ऐसी दौड़ी फगुनहट, ढाँणी-चौक फलाँग।
फागुन झूमे खेत में, मानो पी ली भाँग।।
मानो पी ली भाँग, न सरसों कहना माने।
गए पड़ोसी जान, बचपना है जिद ठाने।।
केश लताएँ झूम लगें नागिन के जैसी।
ढाँणी-चौक फलाँग, फगुनहट दौड़ी ऐसी।।
वसंत -२
बौर सज गये आँगना, कोयल चढ़ी अटार।
चंग द्वार दे दादरा, मौसम हुआ बहार।।
मौसम हुआ बहार, थाप सुन नाचे पायल।
वाह-वाह कर उठा, हृदय डफली का घायल।।
सपने देखे मूँद नयन, सर मौर बंध गये।
कोयल चढ़ी अटार, आँगना बौर सज गये।
वसंत-३

दूब फूल की गुदगुदी, बतरस चढ़ी मिठास।
मुलके दादी भामरी, मौसम को है आस।।
मौसम को है आस, प्यास का त्रास अकथ है।
मधुमाखी हैरान, लली सी कली थकित है।।
कहे 'सलिल' पूर्णिमा, रात हर घड़ी मिलन की।
कथा कही कब जाए, गुदगुदी डूब-फूल की।।
वसंत-४
सुग्गा छेड़े पी कहाँ, सरसों पीली गात।।
सरसों पीली गात, हथेली मेंहदी सजती।
पवन पीटता ढोल, बाँसुरी मन में बजती।।
छतरी मंडप तान, खड़ी है एक टाँग पर।
खड़ी फसल बारात, सजा बाली गेहूँ वर।।
वसंत-५

मानक बाँटे छाँट कर, टेसू ढाक पलाश।।
टेसू ढाक पलाश, काष्ठदु कनक छेवला।
किर्मी, याज्ञिक, यूप्य, सुपर्णी, लाक्षा सुफला।।
वक्रपुष्प,राजादन, हस्तिकर्ण दुःख सोखे।
पाने को सौगात, खड़े सब ऋतु के मोखे।।
वसंत-६
कहें तितलियाँ फूल से, चलो हमारे संग।
रंग सजा कर पंख में, खेलें आज वसंत।।
खेलें आज बसंत, संत भी जप-तप छोड़ें।
बैरागी चुन राग-राह, बरबस पग मोड़ें।।
शिव भी हो संजीव, सुनाएँ सुनें बम्बुलियाँ।
चलो हमारे संग, फूल से कहें तितलियाँ।।
वसंत-७
फूल बसंती हँस दिया, बिखराया मकरंद।
यहाँ-वहाँ सब रच गए, ढाई आखर छंद।।
ढाई आखर छंद, भूल गति-यति-लय हँसते।
सुनें कबीरा झूम, सुनाते जो वे फँसते।।
चटक चन्दनी धूप-रूप सँग सूर्य फँस गया।
बिखराया मकरंद, बसंती फूल हँस दिया।।
वसंत-८
आसमान टेसू हुआ, धरती सब पुखराज।
मन सारा केसर हुआ, तन सारा ऋतुराज।।
तन सारा ऋतुराज, हरितिमा हुई बसंती।
पवन झूमता-छेड़, सुनाता जैजैवंती।।
कनकाभित जल-लहर, पुकारता पिक को सुआ।
धरती सब पुखराज, आसमान टेसू हुआ।।
वसंत-९
भँवरे तंबूरा हुए, मौसम हुआ बहार
कनक गुनगुनी दोपहर, मन कच्चा कचनार।।
दोहा: पूर्णिमा बर्मन
रोला: संजीव वर्मा
*
वसंत-१
फागुन झूमे खेत में, मानो पी ली भाँग।।
मानो पी ली भाँग, न सरसों कहना माने।
गए पड़ोसी जान, बचपना है जिद ठाने।।
केश लताएँ झूम लगें नागिन के जैसी।
ढाँणी-चौक फलाँग, फगुनहट दौड़ी ऐसी।।
वसंत -२
चंग द्वार दे दादरा, मौसम हुआ बहार।।
मौसम हुआ बहार, थाप सुन नाचे पायल।
वाह-वाह कर उठा, हृदय डफली का घायल।।
सपने देखे मूँद नयन, सर मौर बंध गये।
कोयल चढ़ी अटार, आँगना बौर सज गये।
वसंत-३

दूब फूल की गुदगुदी, बतरस चढ़ी मिठास।
मुलके दादी भामरी, मौसम को है आस।।
मौसम को है आस, प्यास का त्रास अकथ है।
मधुमाखी हैरान, लली सी कली थकित है।।
कहे 'सलिल' पूर्णिमा, रात हर घड़ी मिलन की।
कथा कही कब जाए, गुदगुदी डूब-फूल की।।
वसंत-४
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वर गेहूँ बाली सजा, खड़ी फ़सल बारात।सुग्गा छेड़े पी कहाँ, सरसों पीली गात।।
सरसों पीली गात, हथेली मेंहदी सजती।
पवन पीटता ढोल, बाँसुरी मन में बजती।।
छतरी मंडप तान, खड़ी है एक टाँग पर।
खड़ी फसल बारात, सजा बाली गेहूँ वर।।
वसंत-५

ऋतु के मोखे सब खड़े, पाने को सौगात।
मानक बाँटे छाँट कर, टेसू ढाक पलाश।।
टेसू ढाक पलाश, काष्ठदु कनक छेवला।
किर्मी, याज्ञिक, यूप्य, सुपर्णी, लाक्षा सुफला।।
वक्रपुष्प,राजादन, हस्तिकर्ण दुःख सोखे।
पाने को सौगात, खड़े सब ऋतु के मोखे।।
वसंत-६
कहें तितलियाँ फूल से, चलो हमारे संग।
रंग सजा कर पंख में, खेलें आज वसंत।।
खेलें आज बसंत, संत भी जप-तप छोड़ें।
बैरागी चुन राग-राह, बरबस पग मोड़ें।।
शिव भी हो संजीव, सुनाएँ सुनें बम्बुलियाँ।
चलो हमारे संग, फूल से कहें तितलियाँ।।
वसंत-७
फूल बसंती हँस दिया, बिखराया मकरंद।
यहाँ-वहाँ सब रच गए, ढाई आखर छंद।।
ढाई आखर छंद, भूल गति-यति-लय हँसते।
सुनें कबीरा झूम, सुनाते जो वे फँसते।।
चटक चन्दनी धूप-रूप सँग सूर्य फँस गया।
बिखराया मकरंद, बसंती फूल हँस दिया।।
वसंत-८
मन सारा केसर हुआ, तन सारा ऋतुराज।।
तन सारा ऋतुराज, हरितिमा हुई बसंती।
पवन झूमता-छेड़, सुनाता जैजैवंती।।
कनकाभित जल-लहर, पुकारता पिक को सुआ।
धरती सब पुखराज, आसमान टेसू हुआ।।
वसंत-९
भँवरे तंबूरा हुए, मौसम हुआ बहार
कनक गुनगुनी दोपहर, मन कच्चा कचनार।।
मन कच्चा कचनार, जागते देखे सपने
नयन मूँद श्लथ गात, कहे आ जा रे अपने!
स्वप्न न टूटे आज, प्रकृति चुप निखरे-सँवरे
पवन गूंजता छंद, तंबूरा थामे भँवरे।।
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