रविवार, 4 जनवरी 2015

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नवगीत:
संजीव
.
करना सदा
वह जो सही
.
तक़दीर से मत हों गिले
तदबीर से जय हों किले
मरुभूमि से जल भी मिले
तन ही नहीं मन भी खिले
वरना सदा
वह जो सही
भरना सदा
वह जो सही
.
गिरता रहा, उठता रहा
मिलता रहा, छिनता रहा
सुनता रहा, कहता रहा
तरता रहा, मरता रहा
लिखना सदा
वह जो सही
दिखना सदा
वह जो सही
.
हर शूल ले, हँस फूल दे
यदि भूल हो, मत तूल दे
नद-कूल को पग-धूल दे
कस चूल दे, मत मूल दे
सहना सदा
वह जो सही
तहना सदा
वह जो सही
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(प्रयुक्त छंद: हरिगीतिका)
 


2 टिप्‍पणियां:

  1. Gopal Baghel 'Madhu'www.AkhilVishvaEPatrika.comरविवार, जनवरी 04, 2015 6:59:00 pm

    Gopal Baghel 'Madhu'www.AkhilVishvaEPatrika.com
    बहुत सुन्दर व सही

    सादर सप्रेम
    गोपाल

    With regards

    Gopal Baghel 'Madhu'
    Akhil Vishva ePatrika

    Toronto, On., Canada
    iPhone: 1-416-505-8873

    जवाब देंहटाएं
  2. Pran Sharma sharmapran4@gmail.com [HINDI-BHARAT]रविवार, जनवरी 04, 2015 7:01:00 pm

    Pran Sharma sharmapran4@gmail.com [HINDI-BHARAT]


    दोनों कविताओं में शुभ सन्देश है। कविवर सलिल जी के क्या ही कहने ! हरिगीतिका छंद
    पढ़ कर आनंदित हो गया हूँ।

    जवाब देंहटाएं