रविवार, 11 जनवरी 2015

navgeet: -sanjiv

नवगीत: 
संजीव  
छोडो हाहाकार मियाँ!
दुनिया अपनी राह चलेगी 
खुदको खुद ही रोज छ्लेगी 
साया बनकर साथ चलेगी 
छुरा पीठ में मार हँसेगी   
आँख करो दो-चार मियाँ!
आगे आकर प्यार करेगी 
फिर पीछे तकरार करेगी 
कहे मिलन बिन झुलस मरेगी 
जीत भरोसा हँसे-ठगेगी
करो न फिर भी रार मियाँ!
मंदिर में मस्जिद रच देगी 
गिरजे को पल में तज देगी 
लज्जा हया शरम बेचेगी  
इंसां को बेघर कर देगी 
पोंछो आँसू-धार मियाँ!

4 टिप्‍पणियां:

  1. 'Dr.M.C. Gupta' mcgupta44@gmail.com

    सलिल जी,

    बहुत सुंदर है –

    मंदिर में मस्जिद रच देगी
    गिरजे को पल में तज देगी
    लज्जा हया शरम बेचेगी
    इंसां को बेघर कर देगी
    पोंछो आँसू-धार मियाँ!
    ***

    अर्ज़ किया है—

    बेढब है संसार मियाँ
    दीन-धरम बेकार मियाँ


    मज़हब ख़तरे में कह कर
    चलती है तलवार मियाँ

    दुनिया भर में आतंकी
    फैला हाहाकार मियाँ

    --ख़लिश

    ==============================
    --
    (Ex)Prof. M C Gupta
    MD (Medicine), MPH, LL.M.,
    Advocate & Medico-legal Consultant
    www.writing.com/authors/mcgupta44

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  2. क्या बात... क्या बात...
    खलिश जी ! आपका धन्यवाद इसी तर्ज़ पर अन्य सहभागी भी अपनी बात कहें तो एक समूहगान न हो जायेगा?

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  3. santosh kumar ksantosh_45@yahoo.co.in

    आ० आचार्य जी
    काबिले तारीफ है नवगीत मियां.
    बधाई.
    सन्तोष कुमार सिंह

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  4. Veena Vij vij.veena@gmail.com

    पूज्य सलिल जी
    क्या कहने ! आनन्द आ गया

    अर्ज़ किया है आपकी तर्ज़ पर

    क्यूँ करते हाहाकार मियाँ

    दुनिया पर क्या हंसना
    खुद को कर बुलन्द इतना
    चार कन्धों पर क्या जाना
    सब के दिल में घर बनाना
    नही तो होगा बंटाढार मियाँ ।।
    सादर
    वीणा विज उदित

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