गुरुवार, 15 जनवरी 2015

lohadi par: manjul bhatnagar, sanjiv

अभिनव प्रयोग:
मंजुल भटनागर, संजीव, गीत, लोक, साहित्य, पद्य, लोहड़ी,
नमस्कार मित्रों
राय अब्दुल्ला खान भट्टी राजपूत की यह पंक्तियाँ जो हम सब बरसों से मकर संक्रांति के अवसर पर सुनते आयें हैं। ----
सुन्दर मुंदरिये - होय !

तेरा कौन विचारा - होय !
दुल्ला भट्टी वाला - होय !

दुल्ले धी व्याई - होय !
सेर शक्कर पाई - होय !

कुड़ी दा लाल पटाका - होय !
कुड़ी दा सल्लू पाटा - होय !

सल्लू कौन समेटे - होय !

चाचे चूरी कुट्टी - होय !
ओ जिमीदारां लुट्टी - होय !

जिमीदार सुधाए - होय !
गिन गिन पौले आए - होय !

इक पौला रै गया - होय !
सिपाई फड़ के लै गया - होय !

सिपाई ने मारी इट्ट - होय !
भांवे रो ते भांवे पिट्ट - होय !
(पौला=झूठा)
*
मंजुल जी! द्वारा पंक्तियों को पढ़कर उतरी पंक्तियाँ इस लोहड़ी पर उन्हें और आप सबको उपहारस्वरूप भेंट:
सुन्दरिये मुंदरिये, होय!
सब मिल कविता करिए, होय

कौन किसी का प्यारा, होय
स्वार्थ सभी का न्यारा, होय

जनता का रखवाला, होय
नेता तभी दुलारा, होय

झूठी लड़ें लड़ाई, होय
भीतर करें मिताई, होय

पाकी हैं नापाकी, होय
सेना अपनी बाँकी, होय

मत कर ताका-ताकी, होय
कर ले रोका-राकी, होय

झाड़ू माँगे माफ़ी, होय
पंजा है नाकाफी, होय

कमल करे चालाकी, होय
जनता सबकी काकी, होय

हिंदी मैया निरभै, होय
भारत माता की जै, होय
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1 टिप्पणी:

  1. Manjul Bhatnagar

    'salil' ji बहुत बढ़िया आपका भाव पूर्ण गीत अति सुन्दर है बधाई आपको

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