चित्र पर कविता:
१. नवगीत: संजीव
१. नवगीत: संजीव
निज छवि हेरूँ
तुझको पाऊँ
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मन मंदिर में कौन छिपा है?
गहन तिमिर में कौन दिपा है?
मौन बैठकर
किसको गाऊँ?
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हुई अभिन्न कहाँ कब किससे?
गूँज रहे हैं किसके किस्से??
कौन जानता
किसको ध्याऊँ?
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कौन बसा मन में अनजाने?
बरबस पड़ते नयन चुराने?
उसका भी मन
चैन चुराऊँ?
…
२. दोहा - राकेश खण्डेलवाल
२. दोहा - राकेश खण्डेलवाल
कही-सुनी, रूठी- मनी, यों साधें हर शाम |
खुद तो वे राधा हुई, परछाईं घनश्याम
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जवाब देंहटाएंvijay3@comcast.net [ekavita]
अति सुन्दर। बधाई।
Surender Bhutani suren84in@yahoo.com [ekavita]
जवाब देंहटाएंसलिल जी,
इस गीत को कुंदन लाल सहगल की शैली में भी गाया जा सकता है
उनके गीत के बोल हैं
" निस दिन बरसत नैन हमारे " फिल्म सूरदास
सादर,
सुरेन्द्र
दादा
जवाब देंहटाएंवन्दे
आपकी पारखी नज़र को प्रणाम। दोनों गीतों का पदभार समान है, इस लिए उन्हें एक ही लय में गाया जा सकेगा। कोई गायक साथी आपकी यह मनोकामना पूरी कर सके तो आनंद आएगा।