मंगलवार, 16 दिसंबर 2014

navgeet:

नवगीत: 

जितनी रोटी खायी  
की क्या उतनी मेहनत?
मंत्री, सांसद मान्य विधायक 
प्राध्यापक जो बने नियामक 
अफसर, जज, डॉक्टर, अभियंता 
जनसेवक जन-भाग्य-नियंता 
व्यापारी, वकील मुँह खोलें   
हुए मौन क्यों? 
कहें न तुहमत 
श्रमिक-किसान करे उत्पादन 
बाबू-भृत्य कर रहे शासन 
जो उपजाए वही भूख सह 
हाथ पसारे माँगे राशन 
कब बदलेगी परिस्थिति यह 
करें सोचने की 
अब ज़हमत 
उत्पादन से वेतन जोड़ो 
अफसरशाही का रथ मोड़ो 
पर्यामित्र कहें क्यों पिछड़ा? 
जो फैलाता कैसे अगड़ा?
दहशतगर्दों से भी ज्यादा 
सत्ता-धन की 
फ़ैली दहशत

2 टिप्‍पणियां:


  1. Veena Vij vij.veena@gmail.com

    बहुत ही सुंदर सलिलजी!
    कितना कहूँ और क्या-क्या ?
    कैसे..?
    समझ लें अब आप ही..
    सादर
    विणाविज उदित

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  2. kusum sinha kusumsinha2000@yahoo.com

    bahut hi sundar saliljee hamesha aapki kavitao me bhav bahut sundar dhang se vyakt hote hain badhai kusum sinha

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