मंगलवार, 18 नवंबर 2014

navgeet:

नवगीत :

काल बली है 
बचकर रहना 

सिंह गर्जन के  
दिन न रहे अब 
तब के साथी?
कौन सहे अब? 
नेह नदी के 
घाट बहे सब 
सत्ता का सच 
महाछली है 
चुप रह सहना 

कमल सफल है 
महा सबल है 
कभी अटल था 
आज अचल है 
अनिल-अनल है 
परिवर्तन की 
हवा चली है 
यादें तहना 

ये इठलाये 
वे इतराये 
माथ झुकाये 
हाथ मिलाये 
अख़बारों 
टी. व्ही. पर छाये 
सत्ता-मद का 
पैग  ढला है 
पर मत गहना 

बिना शर्त मिल 
रहा समर्थन 
आज, करेगा 
कल पर-कर्तन 
कहे करो 
ऊँगली पर नर्तन  
वर अनजाने 
सखा पुराने 
तज मत दहना 

***

4 टिप्‍पणियां:

  1. santosh kumar ksantosh_45@yahoo.co.in

    नवगीत के लिये के बधाई.
    नवगीत समारोह में सम्मलित होने के लिये भी बधाई.
    सन्तोष कुमार सिंह

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  2. vijay3@comcast.net

    नवगीत अच्छा लगा। बधाई, आदरणीय संजीव जी।
    विजय निकोर

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  3. Kusum Vir kusumvir@gmail.com

    यथार्थपरक, सुन्दर, सामयिक नव गीत के लिए बधाई, आचार्य जी l
    सादर,
    कुसुम

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  4. आभार.लेखन सार्थक हो गया.

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