नवगीत:
मंदिर में
पूजा जाता जो
उसका भी
क्रय-विक्रय होता
*
बिका हुआ भगवान
न वापिस होगा
लिख इंसान हँस रहा
पूजा जाता जो
उसका भी
क्रय-विक्रय होता
*
बिका हुआ भगवान
न वापिस होगा
लिख इंसान हँस रहा
वह क्या जाने
कालपाश में
ईश्वर के वह स्वयं फँस रहा
कालपाश में
ईश्वर के वह स्वयं फँस रहा
आस्था को
नीलाम कर रहा
भवसागर में
खाकर गोता
नीलाम कर रहा
भवसागर में
खाकर गोता
मन-मंदिर खाली
तन-मंदिर में
नित भोग चढ़ाते रहते
तन-मंदिर में
नित भोग चढ़ाते रहते
सिर्फ देह हम
उस विदेह को दिखा
भोग खुद खाते रहते
उस विदेह को दिखा
भोग खुद खाते रहते
थामे माला
राम नाम
जपते रहते है
जैसे तोता
राम नाम
जपते रहते है
जैसे तोता
रचना की
करतूतें बेढब
रचनाकार देखकर विस्मित
करतूतें बेढब
रचनाकार देखकर विस्मित
माली मौन
भ्रमरदल से है
उपवन सारा पल-पल गुंजित
भ्रमरदल से है
उपवन सारा पल-पल गुंजित
कौन बताये
क्या पाता है
क्या कब कौन
कहाँ है खोता???
क्या पाता है
क्या कब कौन
कहाँ है खोता???
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vijay3@comcast.net
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर नवगीत के लिए बधाई।
विजय निकोर
Kusum Vir kusumvir@gmail.com
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर नवगीत, आचार्य जी l
सादर,
कुसुम