नवगीत:
संजीव
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अँगना सूना
बिन गौरैया
उषा उदास
न कलरव बाकी
गुमसुम है
मुँडेर वह बाँकी
शुक-शिशु
करे न
ता-ता-थैया
चुग्गा-दाना
किसे खिलायें?
कौन कीट का
भोग लगाये
कौन चुगे कृमि
बेकल गैया
संझा बेकल
खिड़की सूनी
कल खो गयी
बेकली दूनी
गुम पछुआ
पुरवैया
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amitasharma2000@yahoo.com
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना .बहुत सच्ची सी अच्छी सी ,सुकोमल सी
बहुत बहुत बधाई
बहुत ताजगी की अनुभूति करा दी आपने
आभार
अमिता
shashipadha@gmail.com
जवाब देंहटाएंसंझा बेकल
खिड़की सूनी
कल खो गयी
बेकली दूनी
गुम पछुआ
पुरवैया संजीव जी, बहुत खूबसूरत । बधाई ।
शशि पाधा