शनिवार, 20 सितंबर 2014

navgeet: sanjiv

नवगीत:
संजीव
*
अजब निबंधन
गज़ब प्रबंधन

नायक मिलते
सैनिक भिड़ते
हाथ मिलें संग
पैर न पड़ते

चिंता करते
फ़िक्र न हरते
कूटनीति का
नाटक मंचन
*
झूले झूला
अँधा-लूला
एक रायफल
इक रमतूला

नेह नदारद
शील दिखाएँ
नाहक करते
आत्म प्रवंचन
*
बिना सिया-सत
अधम सियासत
स्वार्थ सिद्धि को
कहें सदाव्रत

नाम मित्रता
काम अदावत
नैतिकता का
पूर्ण विखंडन
***

4 टिप्‍पणियां:

  1. Mahesh Dewedy mcdewedy@gmail.com

    संजीव यह तो नवगीत मे भीनवीन है. बधाई.


    महेश चंद्र द्विवेदी

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  2. Mahesh Dewedy mcdewedy@gmail.com

    संजीव यह तो नवगीत मे भीनवीन है. बधाई.


    महेश चंद्र द्विवेदी

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  3. Kusum Vir kusumvir@gmail.com

    आदरणीय आचार्य जी,
    आज के राजनीतिक परिप्रेक्ष पर आपने बहुत ही सटीक और यथार्थपरक रचना की है l
    अति सुन्दर l
    साधुवाद l
    सादर,
    कुसुम

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  4. महेश जी, कुसुम जी
    यह नवगीत आपको रुचा, मेरा अहोभाग्य। आभार

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