नवगीत:
संजीव
*
अजब निबंधन
गज़ब प्रबंधन
नायक मिलते
सैनिक भिड़ते
हाथ मिलें संग
पैर न पड़ते
चिंता करते
फ़िक्र न हरते
कूटनीति का
नाटक मंचन
*
झूले झूला
अँधा-लूला
एक रायफल
इक रमतूला
नेह नदारद
शील दिखाएँ
नाहक करते
आत्म प्रवंचन
*
बिना सिया-सत
अधम सियासत
स्वार्थ सिद्धि को
कहें सदाव्रत
नाम मित्रता
काम अदावत
नैतिकता का
पूर्ण विखंडन
***
संजीव
*
अजब निबंधन
गज़ब प्रबंधन
नायक मिलते
सैनिक भिड़ते
हाथ मिलें संग
पैर न पड़ते
चिंता करते
फ़िक्र न हरते
कूटनीति का
नाटक मंचन
*
झूले झूला
अँधा-लूला
एक रायफल
इक रमतूला
नेह नदारद
शील दिखाएँ
नाहक करते
आत्म प्रवंचन
*
बिना सिया-सत
अधम सियासत
स्वार्थ सिद्धि को
कहें सदाव्रत
नाम मित्रता
काम अदावत
नैतिकता का
पूर्ण विखंडन
***
Mahesh Dewedy mcdewedy@gmail.com
जवाब देंहटाएंसंजीव यह तो नवगीत मे भीनवीन है. बधाई.
महेश चंद्र द्विवेदी
Mahesh Dewedy mcdewedy@gmail.com
जवाब देंहटाएंसंजीव यह तो नवगीत मे भीनवीन है. बधाई.
महेश चंद्र द्विवेदी
Kusum Vir kusumvir@gmail.com
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी,
आज के राजनीतिक परिप्रेक्ष पर आपने बहुत ही सटीक और यथार्थपरक रचना की है l
अति सुन्दर l
साधुवाद l
सादर,
कुसुम
महेश जी, कुसुम जी
जवाब देंहटाएंयह नवगीत आपको रुचा, मेरा अहोभाग्य। आभार