
मैया तेरे रूप अनेक
घर घर बैठी लाल पालती
ज्योति दीप में सतत बालती
शिवशंकर पर चरण धर दिए
जयललिता माया सँवारती
दे कुछ बुद्धि विवेक
पत्रकार मनमानी करता
सर दे साई बुद्धि न वरता
खुद ही खुद को मार कुल्हाड़ी
दोष दूसरों पर क्यों धरता?
नहीं इरादे नेक
नाम पाक नापाक इरादे
करता हरदम झूठे वादे
वस्त्र न्यूनतम पहनें रहतीं
दीन-धनी हैं भिन्न इरादे
लोग नयन लें सेक
भारत शक्ति नयी पायेगा
सब जग इसके गुण जाएगा
हर नर बने नरेंद्र, कृपा कर-
पकड़ चरण जग तर जाएगा
सत्य शक्ति हो एक
Kusum Vir kusumvir@gmail.com
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक, सामयिक, यथार्थमय और सारगर्भित गीत लिखा है, आचार्य जी l
ढेरों बधाई और सराहना स्वीकार करें l
सादर,
कुसुम
कुसुम जी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंksantosh_45@yahoo.co.in'
जवाब देंहटाएंआ० सलिल जी
सुन्दर गीत के लिये बधाई.
सन्तोष कुमार सिंह
Ram Gautam gautamrb03@yahoo.com
जवाब देंहटाएंआ. आचार्य 'सलिल' जी,
प्रणाम:
एक सुन्दर भावात्मक- गीत के लिए साधुवाद और बधाई !!
सादर- आरजी
संतोष जी, गौतम जी
जवाब देंहटाएंसादर आभार