ॐ
छंद सलिला:
अवतार छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति रौद्राक, प्रति चरण मात्रा २३ मात्रा, यति १३ - १०, चरणान्त गुरु लघु गुरु (रगण) ।
लक्षण छंद:
दुष्ट धरा पर जब बढ़ें / तभी अवतार हो
तेरह दस यति, रगण रख़ / अंत रसधार हो
सत-शिव-सुंदर ज़िंदगी / प्यार ही प्यार हो
सत-चित-आनँद हो जहाँ / दस दिश दुलार हो
छंद सलिला:
अवतार छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति रौद्राक, प्रति चरण मात्रा २३ मात्रा, यति १३ - १०, चरणान्त गुरु लघु गुरु (रगण) ।
लक्षण छंद:
दुष्ट धरा पर जब बढ़ें / तभी अवतार हो
तेरह दस यति, रगण रख़ / अंत रसधार हो
सत-शिव-सुंदर ज़िंदगी / प्यार ही प्यार हो
सत-चित-आनँद हो जहाँ / दस दिश दुलार हो
उदाहरण:
१. अवतार विष्णु ने लिये / सब पाप नष्ट हो
सज्जन सभी प्रसन्न हों / किंचित न कष्ट हो
अधर्म का विनाश करें / धर्म ही सार है-
ईश्वर की आराधना / सच मान प्यार है
२. धरती की दुर्दशा / सब ओर गंदगी
पर्यावरण सुधारना / ईश की बंदगी
दूर करें प्रदूषण / धरा हो उर्वरा
तरसें लेनें जन्म हरि / स्वर्ग है माँ धरा
३. प्रिय की मुखछवि देखती / मूँदकर नयन मैं
१. अवतार विष्णु ने लिये / सब पाप नष्ट हो
सज्जन सभी प्रसन्न हों / किंचित न कष्ट हो
अधर्म का विनाश करें / धर्म ही सार है-
ईश्वर की आराधना / सच मान प्यार है
२. धरती की दुर्दशा / सब ओर गंदगी
पर्यावरण सुधारना / ईश की बंदगी
दूर करें प्रदूषण / धरा हो उर्वरा
तरसें लेनें जन्म हरि / स्वर्ग है माँ धरा
३. प्रिय की मुखछवि देखती / मूँदकर नयन मैं
विहँस मिलन पल लेखती / जाग-कर शयन मैं
मुई बेसुधी हुई सुध / मैं नहीं मैं रही-
चक्षु से बही जलधार / मैं छिपाती रही.
*********
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, रसामृत, राजीव, राधिका, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)
*********
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, रसामृत, राजीव, राधिका, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)
Kusum Vir द्वारा yahoogroups.com ekavita
जवाब देंहटाएं/प्रिय की मुखछवि देखती / मूँदकर नयन मैं
विहँस मिलन पल लेखती / जाग-कर शयन मैं
मुई बेसुधी हुई सुध / मैं नहीं मैं रही-
चक्षु से बही जलधार / मैं छिपाती रही.
आदरणीय आचार्य जी,
बहुत सुन्दर बिम्ब, अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति l
अशेष सराहना के साथ,
सादर,
कुसुम
कुसुम
जवाब देंहटाएं जी
आपका आभार शत-शत.