छंद सलिला:
दीपकी छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महादैशिक , प्रति चरण मात्रा २० मात्रा, चरणांत तीन लघु या गुरु लघु (जगण , तगण, नगण)।
लक्षण छंद:
'दीपकी' प्रकाश ने जब दिया उजास
तब प्रकाश ने दिया सृष्टि को हुलास
मनुज ने 'जतन' किया हँसे धरा-गगन
बीसियों से छंद रच फिर रहो मगन
उदाहरण:
१. खतों-किताबत अब नहीं करते आप
मुहब्बत की कहो किस तरह हो माप?
वह कैसे आएगा वतन के काम?
जिससे खिदमत ना पा सके माँ-बाप
२. गीत जब भी लिखो रस कलश की तरह
मीत जब भी चुनो नीम रस की तरह
रोककर-टोंककर कर सके जो जिरह
हाथ छोड़े नहीं ज्यों बँधी हो गिरह
३. हार हिम्मत नहीं कर निरंतर जतन
है हमारा सँवारें सभी मिल वतन
धूल में फूल हो शूल को दूरकर-
एक हों नेक हों भेद सब भूलकर
*********************************************
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दीपकी, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हेमंत, हंसगति, हंसी)
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
दीपकी छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महादैशिक , प्रति चरण मात्रा २० मात्रा, चरणांत तीन लघु या गुरु लघु (जगण , तगण, नगण)।
लक्षण छंद:
'दीपकी' प्रकाश ने जब दिया उजास
तब प्रकाश ने दिया सृष्टि को हुलास
मनुज ने 'जतन' किया हँसे धरा-गगन
बीसियों से छंद रच फिर रहो मगन
उदाहरण:
१. खतों-किताबत अब नहीं करते आप
मुहब्बत की कहो किस तरह हो माप?
वह कैसे आएगा वतन के काम?
जिससे खिदमत ना पा सके माँ-बाप
२. गीत जब भी लिखो रस कलश की तरह
मीत जब भी चुनो नीम रस की तरह
रोककर-टोंककर कर सके जो जिरह
हाथ छोड़े नहीं ज्यों बँधी हो गिरह
३. हार हिम्मत नहीं कर निरंतर जतन
है हमारा सँवारें सभी मिल वतन
धूल में फूल हो शूल को दूरकर-
एक हों नेक हों भेद सब भूलकर
*********************************************
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दीपकी, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हेमंत, हंसगति, हंसी)
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
Mahesh Dewedy द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंekavita
आचार्य सलिल जी,
आप ने आचार्य उपाधि को सार्थक कर दिया है. साधुवाद.
महेश चंद्र द्विवेदी
आत्मीय बंधु
जवाब देंहटाएंआपके स्नेह को प्रणाम।
कुछ मित्रों को इस शब्द से कष्ट होता है, उनकी आत्मशांति के लिये मेरा विद्यार्थी मात्र होना ही उचित है.
वस्तुतः अभी छंद शास्त्र का क, ख ही सीख रहा हूँ. प्रस्तुति का उद्देश्य त्रुटियों का संकेत पाकर अपने लिखे को सुधारना मात्र है.
आपकी सुरुचि हेतु हार्दिक धन्यवाद। इससे आगे सीखने का उत्साह मिलता है.
Kusum Vir द्वारा yahoogroups.com ekavita
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी,
सुरुचिपूर्ण शब्दों के साथ भावों की सुरसरि में आप्लावित आपकी यह छन्द रचना अनुपम है l
आपकी काव्य प्रतिभा को नमन l
सादर,
कुसुम
कुसुम सुरभि से महकता, ईं कविता का बाग
जवाब देंहटाएंयही आपसे प्रार्थना, बना रहे अनुराग.
आपकी प्रेरणा दे रही हौसला, दूर होने का मत कीजिए फ़ैसला।
जवाब देंहटाएंachal verma
जवाब देंहटाएंekavita
super composition with very timely takes for all who are concerned for the Matribhumi,even if remaining far from there.
आपकी गुण ग्राहकता को नमन.
जवाब देंहटाएं