ग़ज़ल:
राजेंद्र पासवान 'घायल'
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उसका लिया जो नाम तो ख़ुशबू बिखर गयी
तितली मेरे करीब से होकर गुज़र गयी
अधखुली आँखों से उसने जब कभी देखा मुझे
मेरे मन की हर उदासी हर ख़ुशी से भर गयी
फूल जब दामन से उसके गुफ़्तगू करने लगे
देह की ख़ुशबू से उनकी अपनी ख़ुशबू डर गयी
हुस्न है तो इश्क है कितना ग़लत कहते हैं लोग
लैला मजनूं की मोहब्बत नाम रोशन कर गयी
उसकी आँखों की चमक से या वफ़ा के नूर से
रात काली थी मगर वो
रोशनी से भर गयी
याद है उसकी कि 'घायल' भोर की ठंडी हवा
गुदगुदाकर जो मुझे फिर आज तन्हा कर गयी
आर पी 'घायल'
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंdhanyavad.
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