शनिवार, 2 नवंबर 2013

kavya salila: sanjiv

काव्य सलिला:
संजीव
*
कल तक थे साथ
आज जो भी साथ नहीं हैं
हम एक दिया तो
उनकी याद में जलायें मीत
सर काट शत्रु ले गए
जिनके नमन उन्हें
हँसते समय दो अश्रु
उन्हें भी चढ़ाएं मीत.
जो लुट गयी
उस अस्मिता के पोंछ ले आँसू
जो गिर गया उठा लें
गले से लगाएं मीत.
कुटिया में अँधेरा न हो
यह सोच लें पहले
झालर के पहले
दीप में बाती जलाएं मीत.
*

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