गुरुवार, 24 अक्टूबर 2013

muktika: zindagi ki imarat -sanjiv

मुक्तिका :
जिंदगी की इमारत
संजीव
*
जिंदगी की इमारत में, नीव हो विश्वास की
दीवालें आचार की हों, छतें हों नव आस की
बीम संयम की सुदृढ़, मजबूत कॉलम नियम के
करें प्रबलीकरण रिश्ते, खिड़कियाँ हों हास की
कर तराई प्रेम से नित, छपाई के नीति से
ध्यान धरना दरारें बिलकुल न हों संत्रास की
रेट आदत, गिट्टियाँ शिक्षा, कला सीमेंट हो
​फर्श श्रम का, मोगरे सी गंध हो वातास की
उजाला शुभकामना का, द्वार हो सद्भाव का
हौसला विद्युतीकरण हो, रौशनी सुमिठास की
वरांडे ताज़ी हवा, दालान स्वर्णिम धूप से
पाकशाला तृप्ति, पूजास्थली हो सन्यास की

फेंसिंग व्यायाम, लिंटल मित्रता के हों 'सलिल'
बालकनियाँ पड़ोसी, अपनत्व के अहसास की
* ​ facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

8 टिप्‍पणियां:

  1. Kusum Vir द्वारा yahoogroups.com

    // कर तराई प्रेम से नित, छपाई के नीति से
    ध्यान धरना दरारें बिलकुल न हों संत्रास की
    उजाला शुभकामना का, द्वार हो सद्भाव का
    हौसला विद्युतीकरण हो, रौशनी सुमिठास की - -

    आदरणीय आचार्य जी,
    वाह ! क्या बात !
    नई सोच, अद्भुत परिकल्पना और अप्रतिम बिम्बों से सुसज्जित
    आप द्वारा निर्मित ज़िन्दगी की यह इमारत बहुत ही सुन्दर है l
    अशेष सराहना के साथ,
    सादर,
    कुसुम वीर

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  2. sn Sharma द्वारा yahoogroups.com


    आ० आचार्य जी,
    मानव शरीर संरचना पर आपकी यह मुक्तिकाएं अनूठा प्रयोग हैं।
    इमारत निर्माण के साथ इसकी संतुलना बड़े सार्थक रूप में मिली।
    काव्य-कलाके इस उत्कृष्ट नमूने को पढ़ कर मन मुग्ध हुआ । आपकी लेखनी को बारम्बार नमन!
    सराहना स्वरुप यह शब्द-पुष्प आपको समर्पित -

    डिग्रीधारक कुशल सिविल इंजीनियर
    के काव्य-कौशल का चमत्कार यही
    शरीर की इमारत के निर्माण में भी
    सिद्धहस्त हैं 'सलिल ' संजीव जी
    कमल

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  3. - chandawarkarsm@gmail.com

    आदरणीय आचार्य ’सलिल’ जी,
    अति सुन्दर! अप्रतिम!
    सस्नेह
    सीताराम चंदावरकर

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  4. Ram Gautam

    आ. आचार्य संजीव 'सलिल' जी,
    प्रणाम:
    हमारे नित के व्यवहार यदि इस प्रकार के आचरण में ढल जायें तो जिन्दगी का सार्थकता से जीना अपने लिये और दूसरों के लिये भी आसान हो जाता है| बहुत सुंदर अभियंता की दॄष्टि और समाज के समानान्तर से लिखी मुक्तिका सुंदर और सशक्त है| मुक्तिकायों में अँगरेज़ी और हिन्दी का मिश्रण भी देखने को मिला|

    मुक्तक और मुक्तिका में क्या अंतर है, कॄपया बताने का कष्ट करें| क्योंकि मुक्तिका ग़ज़ल के शेर जैसी लग रही है और मुक्तक की दो अखिरी लाइनों की तरह| मुक्तिका स्त्री-लिंग और मुक्तक-पुल्लिन्ग के भाव में है|

    दीपावली पर भारत की यात्रा पर आ रहा हूँ समय मिला तो जबलपुर में आपसे मिलने की कोशिश करूँगा | आशा है आप पूर्ण स्वास्थ से कुशलता से होंगे |
    सादर- गौतम

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  5. माननीय

    वंदे मातरम

    आपकी पारखी दृष्टि को नमन.

    हिंदी को छंद की विरासत संस्कृत से मिली है. संस्कृत में दो पंक्तियों, तीन पंक्तियों, चार पंक्तियों, पाँच पंक्तियों, छह पंक्तियों, आठ पंक्तियों आदि के छंद हैं. इसी आधार पर हिंदी में छंद विकसित हुए. दो पंक्तियों के छंद पदांत की समानता तथा कुछ अन्य नियमों के आधार पर बने, जैसे दोहा, सोरठा आदि.
    सम पदांतिक दो पंक्तियों के बाद तीसरी पंक्ति तुक रहित तथा चौथी पंक्ति में समान तुक व् चारों पंक्तियों में समान मात्रा के छंद को मुक्तक कहा गया क्योंकि यह अपने आपमें पूर्ण अर्थात अन्यों से मुक्त था. इसी मुक्तक कि अंतिम दो पंक्तियों की तरह दो-दो पंक्तियाँ जिनमें से एक तुक रहित तथा दूसरी समान तुक की हो को जोड़कर बनी रचना मुक्तिका है. कुछ रचनाकार मुक्तिका को अरबी-फ़ारसी से भारत में आयी और हिंदी की एक शैली उर्दू की प्रमुख काव्य विधा ग़ज़ल के सामान मानते हैं किन्तु मुझे दोनों में अंतर प्रतीत होता है. उर्दू गज़ल पूर्व निश्चित लय-खण्डों (बह्रों) पर आधारित होती हैं, उनमें पदभार की गणना का तरीका हिंदी की मात्रा गणना प्रणाली से भिन्न है तथा उसमें लघु को गुरु या गुरु को लघु पढ़ने की छूट है.
    मुक्तक केवल ४ पंक्तियों का होता है, मुक्तिका मुक्तक का विस्तार है जो ६ या अधिक पंक्तियों की होती है.
    मुक्तिका में आरम्भिक या उदयिका, अंतिका, स्वतंत्र द्विपदियाँ आदि संरचनागत विशिष्टताएँ एक सीमा तक ग़ज़ल से मिलती हैं किन्तु भिन्नताएं अधिक प्रभावी हैं. दोनों का संस्कार अलग है. बह्र पर लिखी गयी मुक्तिका ग़ज़ल के समीप हो सकती है किन्तु दोहा मुक्तिका, सोरठा मुक्तिका, उल्लाला मुक्तिका, हाइकु मुक्तिका आदि को कोई जानकार ग़ज़ल नहीं कहेगा।
    आशा है समाधान हो सकेगा।

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  6. पुनश्च:
    इस मुक्तिका की पृष्ठ भूमि भवन निर्माण की है, कथ्य की आवश्यकतानुसार भवन निर्माण संबंधी प्रचलित शब्द प्रयोग किये गए हैं, वे हिंदी और अंग्रेजी दोनों के हैं.
    आपके दर्शन पाना मेरा सौभाग्य होगा, प्रतीक्षा रहेगी।
    पहले की तुलना में स्वास्थ्य बेहतर है. घर में कुछ कदम चल पा रहा हूँ. घुटना ठीक से वज़न नहीं ले रहा, दर्द भी होता है. अतः, अभी बहार अधिक नहीं निकल पा रहा हूँ।

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