एक प्रयोग:
परिधिहीन है प्यार
संजीव
*
*
परिधिहीन है प्यार हमारा
चक्रव्यूह है चाह हमारी
चक्रव्यूह है चाह हमारी
सीधी रेखा मेहनत का पथ
वर्तुल-विषमय डाह बिचारी
वक्र लकीरें करतल अंकित
त्रिभुज चतुर्भुज वक्र चाप भी
व्यास-आस है लक्ष्य बिंदु सा
कर्ण-वृत्त वरदान, शाप भी
अंक अंक में गुणित वर्ग घन
धन ऋण ऋण का हुआ गुणनफल
धन धन मिल ऋण कभी न होता
गुणा-भाग विपरीत चलन चल
भिन्न विभिन्न अभिन्न बूझना
सरल नहीं है, कठिन न मानो
प्रतिषत समय काम दूरी से
सजग रहो अति निकट न जानो
चलनकलन के समीकरण भी
खेल रहे हैं आँख मिचौली
बनते-मिटते रहे समुच्चय
हेरें चुप अमराई-निम्बोली
अंक बीज रेखाओं की तिथि
हर कपाल पर होती अंकित
भाग्यविधाता पग-पग पग रख
मंजिल करता पथ पर टंकित
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Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
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Alpna Mishra
जवाब देंहटाएंBahut sundar.
जवाब देंहटाएंऋण ऋण मिलकर धन हो जाता
धन धन मिल ऋण कभी न होता
गुणा-भाग का उल्टा नाता
(ना खत्म होने वाला खाता )
आदरणीय आचार्य ’सलिल’ जी,
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर!
क्षमा चाहूंगा।ऋण मे ऋण मिल कर आधिक नहीं होता किन्तु ऋण से ऋण को गुण कर आधिक होता है। जैसे (-२) + (-३) = -५; (-२) x (-३) = + ६।
सस्नेह
सीताराम चंदावरकर
sn Sharma द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंआ० आचार्य जी ,
परिधिहीन प्यार की परिभाषा में आपने गणित के नियमोंका चमत्कारिक प्रयोग किया है। कला की दृष्टि से यह रचना अद्वितीय है। विनम्र साधुवाद ।
आपकी लेखनी को नमन।
सादर
कमल
आदरणीय
जवाब देंहटाएंसंतुलन की प्रक्रिया में तथ्यात्मक भूल हेतु क्षमा प्रार्थी हूँ. त्रुटि इंगित करने हेतु आपका आभार। देखिये, क्या निम्न परिवर्तन से त्रुटि दूर हो सकेगी?
अंक अंक में गुणित वर्ग घन
धन ऋण ऋण का हुआ गुणनफल
धन धन मिल ऋण कभी न होता
गुणा-भाग विपरीत चलन चल
- mcdewedy@gmail.com
जवाब देंहटाएंसलिल जी=
गणितीय प्रतिमानो के इस विद्वत्तापूर्ण प्रयोग हेतु साधुवाद. रोचक रचना.
महेश चंद्र द्विवेदी
chandawarkarsm@gmail.com की
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य ’सलिल’ जी,
अब गणित + काव्य दोनों ठीक लगते हैं। पुनश्च बधाई!
सस्नेह
सीताराम चंदावरकर
Kusum Vir द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी,
काव्य में गणित, और गणित में काव्य l
अति सुन्दर अभिनव प्रयोग l
सराहना एवं आदर के साथ,
कुसुम वीर
Shriprakash Shukla yahoogroups.com
जवाब देंहटाएं6:01 pm (3 घंटे पहले)
ekavita
आदरणीय आचार्य जी,
सुन्दर रुचिकर रचना । बधाई ।
सादर
श्रीप्रकाश शुक्ल