मुक्तिका
सारे जहाँ से अच्छा...
संजीव
*
सारे जहाँ से अच्छा है रुपैया हमारा
होकर शहीद खुद पर, तुम फख्र कर सकोगे
सत्ता से दूर रखकर, हमने तुम्हें उबारा
***
सारे जहाँ से अच्छा...
संजीव
*
सारे जहाँ से अच्छा है रुपैया हमारा
डालर की कीमतों को हमने दिया सहारा
नेता हमें सिखाते, परदेश है सुरक्षित
रिश्वत का धन जमाकर, हर रोज छिप निहारा
काले हैं कारनामे, कुर्ते सफ़ेद पहने
चोरों ने पाई सत्ता, संतों का भाग्य कारा
चोरों ने पाई सत्ता, संतों का भाग्य कारा
है लक्ष्य मौज-मस्ती, श्रम-शर्म त्याज्य हमको
कल कोई, आज कोई, कल कोई हुआ प्यारा
वसुधा कुटुंब हमको, जग नीड़, देश भूले
जो दे नहीं कमीशन, पल में उसे बिसारा
हर दीन-हीन जन के, सेवक रईस हैं हम
जिसने हमें जिताया, तत्क्षण वही है हारा
अनुराग-मोह-माया, है हेय ले रहे हम
उत्तम विराग लेकर, जनगण करे गुजारा
अपने सुतों से ज्यादा, बेटे तुम्हारे प्यारे
ली कुर्सी तुच्छ- देकर, सीमा का स्वर्ग सारा होकर शहीद खुद पर, तुम फख्र कर सकोगे
सत्ता से दूर रखकर, हमने तुम्हें उबारा
***
Kusum Vir
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी एवं अमिताभ जी,
बहुत ख़ूब।
कुछ पंक्तियाँ मेरी ओर से भी ;
खाद्यान्न योजना की करते हैं ऊँची बातें
झूठे दिलासे देना अब काम है हमारा
जुर्म जितने मर्ज़ी कर जाएं फ़िक्र क्या है
चुनावी टिकट लेना अधिकार है हमारा
न हम कभी सुधरे हैं, न हम कभी सुधरेंगे
ये बानगी, दिखावा, दस्तूर है हमारा
कुसुम वीर
sn Sharma via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंआ० अमित जी आचार्य जी ,कुसुम वीर जी ,
आपकी रचनाओं के लिए ढेर सराहना के साथ चार पंक्तियाँ मेरी भी -
अपने को सही कहना औरों को दोष देना
अब रह गया है उनका यही काम सारा
सोचें नहीं तनिक भी हैं तर्क किये जाते
आखिर करेगा कोई कब तक ये हठ गवारा
कमल