मंगलवार, 20 अगस्त 2013

muktika: kaise?... sanjiv

मुक्तिका:
कैसे?… 
संजीव
*
जो हकीकत है तेरी दुनिया बताऊँ कैसे?
आइना आँख के अंधे को दिखाऊँ कैसे?
*
बात बढ़-चढ़ के तू करता है, तुझे याद रहे
तू है नापाक, तुझे पाक बुलाऊँ कैसे?
*
पाल चमचों को, नहीं कोई बड़ा होता है.
पूत दरबार में चढ़ पाए, सिखाऊँ कैसे?
*
हैं सितारे तेरे गर्दिश में सम्हल ऐ नादां!
तू है तिनका, तुझे बारिश में बचाऊँ कैसे?
*
'चोर की दाढ़ी में तिनका' की मसल याद रहे
किसी काने को कहो टेंट दिखाऊँ कैसे?
*
पीठ में भाई की भाई ने छुरा फिर घोंपा
लाल हैं सरहदें मस्तक न जुकाऊँ कैसे?
*
देख होता है अनय सच को छिपाऊँ कैसे?​
​कल कहा ठीक, गलत आज बताऊँ कैसे?
*
शीश कटते हैं जवानों के, नयन नम होते-
​सुन के भाषण औ' बहस महुद को मनाऊँ कैसे??

5 टिप्‍पणियां:

  1. Dr.M.C. Gupta via yahoogroups.com

    बहुत ख़ूब, सलिल जी--

    हैं सितारे तेरे गर्दिश में सम्हल ऐ नादां!
    तू है तिनका, तुझे बारिश में बचाऊँ कैसे?

    --ख़लिश

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  2. Kusum Vir via yahoogroups.com

    // बात बढ़-चढ़ के तू करता है, तुझे याद रहे
    तू है नापाक, तुझे पाक बुलाऊँ कैसे? //

    आदरणीय आचार्य जी,
    सच्चाई बयां करती यह मुक्तिका मन को बहुत रुची l
    बहुत बधाई और सराहना के साथ,
    सादर,
    कुसुम वीर

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  3. dks poet

    आदरणीय सलिल जी,
    मुक्तिका अच्छी लगी। दाद कुबूल करें।
    सादर

    धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’

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  4. Ram Gautam

    आ. आचार्य संजीव 'सलिल' जी,

    दुश्मन को ललकारती हुयी और हम सबको सावधान करतीं हुयीं, वीर- रस
    का पुट लिए हुए बहुत सुंदर लिखा है | आपको नमन और साधुवाद !!!
    सादर- गौतम

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  5. sn Sharma via yahoogroups.com
    आ० आचार्यजी ,
    सामयिक सच्चाइओ से लबरेज मुक्तिकाएं ।
    ढेर सराहना के साथ ,
    सादर
    कमल

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