मुक्तिका:
कैसे?…
संजीव
*
*
जो हकीकत है तेरी दुनिया बताऊँ कैसे?
आइना आँख के अंधे को दिखाऊँ कैसे?
*
*
बात बढ़-चढ़ के तू करता है, तुझे याद रहे
तू है नापाक, तुझे पाक बुलाऊँ कैसे?
*
*
पाल चमचों को, नहीं कोई बड़ा होता है.
पूत दरबार में चढ़ पाए, सिखाऊँ कैसे?
*
*
हैं सितारे तेरे गर्दिश में सम्हल ऐ नादां!
तू है तिनका, तुझे बारिश में बचाऊँ कैसे?
*
*
'चोर की दाढ़ी में तिनका' की मसल याद रहे
किसी काने को कहो टेंट दिखाऊँ कैसे?
*
पीठ में भाई की भाई ने छुरा फिर घोंपा
लाल हैं सरहदें मस्तक न जुकाऊँ कैसे?
*
*
देख होता है अनय सच को छिपाऊँ कैसे?
कल कहा ठीक, गलत आज बताऊँ कैसे?
*
शीश कटते हैं जवानों के, नयन नम होते-
सुन के भाषण औ' बहस महुद को मनाऊँ कैसे??
Dr.M.C. Gupta via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब, सलिल जी--
हैं सितारे तेरे गर्दिश में सम्हल ऐ नादां!
तू है तिनका, तुझे बारिश में बचाऊँ कैसे?
--ख़लिश
Kusum Vir via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएं// बात बढ़-चढ़ के तू करता है, तुझे याद रहे
तू है नापाक, तुझे पाक बुलाऊँ कैसे? //
आदरणीय आचार्य जी,
सच्चाई बयां करती यह मुक्तिका मन को बहुत रुची l
बहुत बधाई और सराहना के साथ,
सादर,
कुसुम वीर
dks poet
जवाब देंहटाएंआदरणीय सलिल जी,
मुक्तिका अच्छी लगी। दाद कुबूल करें।
सादर
धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’
Ram Gautam
जवाब देंहटाएंआ. आचार्य संजीव 'सलिल' जी,
दुश्मन को ललकारती हुयी और हम सबको सावधान करतीं हुयीं, वीर- रस
का पुट लिए हुए बहुत सुंदर लिखा है | आपको नमन और साधुवाद !!!
सादर- गौतम
sn Sharma via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंआ० आचार्यजी ,
सामयिक सच्चाइओ से लबरेज मुक्तिकाएं ।
ढेर सराहना के साथ ,
सादर
कमल