रविवार, 18 अगस्त 2013

doha salila : aaj ki baat -sanjiv

दोहा सलिला-
आज की बात :
संजीव
*
नर ने चुने नरेश बन,  भूल गए कर्तव्य
इसीलिये धुँधला लगे, आज 'सलिल' भवितव्य
*
रुपये को पैसा कहें, मिट जाएगा कष्ट
नीति यही सरकार की, बढ़ता रहे अनिष्ट
*
मुफ्त बाँट सौ- कर बढ़ा, करें वसूल हजार
चतुर आई.ए.एस. हैं, सचिवालय-सरकार
*
मान न मोल करें तनिक, श्रम का- हम दुत्कार
फिर मजूर कोई बने, क्यों? सहने फटकार??
*
नाकाबिल इंजीनियर, गढ़ते हैं कोलेज
श्रेष्ठ बढ़ई-मिस्त्री बनें, कोई न दे नोलेज
*
रहे भीख पर आश्रित, मतदाता- दे वोट
शासन के अनुदान के, पीछे भारी खोट
*
रोजगार पाकर गहे, शक्ति न लोक-समाज
नेतागण चाहें यही, करें निबल पर राज
*
देश नहीं दीवालिया,  धन ले गये विदेश
वापिस लाने के लिये, जनगण दे आदेश
*
सेना महज गुलाम है, मंत्रालय का दोष
मंत्री-सचिवों का बढ़े, कमा कमीशन कोष
*
पिठ्ठू है सरकार यह, अमरीका की मीत
उसके हित की नीतियाँ, बना गा रही गीत
*
होता है निर्यात कम, बहुत अधिक आयात
मंत्री-अफसर कमीशन ले, करते आघात
*
उत्पादन करते महज, यंत्री  श्रमिक किसान
शिक्षक डॉक्टर जरूरी, ज्ञान-जान की खान
*
शांति-व्यवस्था के लिए, सेना पुलिस सहाय
न्यायालय का भी नहीं,  दूजा कोई उपाय
*
बाबू अफसर भृत्य का, कहीं न कोई काम
मिटें दलाल-वकील भी, कर श्रम पायें नाम
*
जिसका उत्पादन अधिक, उसे मिले ईनाम
अन उत्पादक से छिनें, सुविधा 'सलिल' तमाम
*
जन-प्रतिनिधि दलहीन हों, राष्ट्रीय सरकार
रहें समर्थक सदन में, जैसे घर-परिवार
*
सब मिल संचालन करें, बने राष्ट्र-हित नीति
देश स्वावलंबी बने, महाशक्ति तज भीति
*
नर नरेश बनकर करे, सतत राष्ट्र-निर्माण
'सलिल' तभी हो सकेगा हर संकट से त्राण
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6 टिप्‍पणियां:

  1. shar_j_n

    आदरणीय आचार्य सलिल जी,

    मान न मोल करें तनिक, श्रम का- हम दुत्कार
    फिर मजूर कोई बने, क्यों? सहने फटकार?? --- वाह! कितनी सही बात !
    *
    नाकाबिल इंजीनियर, गढ़ते हैं कोलेज
    श्रेष्ठ बढ़ई-मिस्त्री बनें, कोई न दे नोलेज --- हाँ, देखा है ऐसा भी :)
    *

    *
    रोजगार पाकर गहे, शक्ति न लोक-समाज
    नेतागण चाहें यही, करें निबल पर राज ---- सामयिक और सच्ची बात!
    *
    देश नहीं दीवालिया, ले गये विदेश --- यहाँ देखें एक बार कृपया आचार्य जी!

    वापिस लाने के , जनगण दे आदेश
    *
    जन-प्रतिनिधि दलहीन हों, राष्ट्रीय सरकार
    रहें समर्थक सदन में, जैसे घर-परिवार ---- आहा! क्या कल्पना है! आमीन!
    *
    सादर शार्दूला

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  2. achal verma

    रहे भीख पर आश्रित, मतदाता- दे वोट
    शासन के अनुदान के, पीछे भारी खोट


    आ. आचार्य जी,
    इन पँक्तियों ने बरबस ही ध्यान खींच लिया।
    वैसे तो आप की हर रचना एक नवीनता लिए आती है और विचारों के लिए बहुत सारे अवसर प्रदान कर जाती है, पर इन को पढकर लगता है, कि हम बेकार को आजाद हुए ,
    "देश भी बँटा, घटे आदर्श ,
    गिरे हम नीचे ही जा रहे ।
    मगर अफ़सोस, हैं हम बेहोश ,
    कहें भी तो हम किससे कहें ।
    जिन्हें संसद में भेजें आज
    वही करने लगते हैं राज
    स्वार्थ बन जाता उनका काज
    कहाँ तक गिरता जाय़ समाज !!
    इसे तो ऊपर आना है, भँवर से इसे बचाना है॥

    ॥"......अचल......॥

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  3. Kiran Sinha

    एक सही संदेश, बहुत अच्छा लगा.
    बधाई हो. ऐसे ही sandesh की आवश्यकता है.
    सादर
    किरण सिन्हा

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  4. sn Sharma via yahoogroups.com

    आ ० आचार्य जी ,
    अति सामयिक और आज की वास्तविकता पर चोट करते दोहे।
    ढेर सराहना स्वीकार करें ,
    सादर
    कमल

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  5. Kusum Vir via yahoogroups.com

    आदरणीय आचार्य जी,
    देश के बिगड़ते हालातों, यहाँ की वृहद् समस्याओं और उनके असली जिम्मेदारों पर
    प्रतिघात करते आपके सुन्दर दोहे आपकी देश निर्माण के लिए ऊँची सोच और चिन्तन को उजागर करते हैं l
    अंतिम तीन दोहे समस्याओं का निदान भी सुझाते हैं l
    धन्य है आपकी देशभक्ति और धन्य है आपकी असीम काव्य प्रतिभा l
    ढेरों बधाई और सराहना के साथ,
    सादर,
    कुसुम वीर

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  6. देश नहीं दीवालिया, ले गये विदेश
    वापिस लाने के , जनगण दे आदेश
    दोहे में कुछ शब्द टंकित नहीं हुए-
    देश नहीं दीवालिया, ले गए राशि विदेश
    वापिस लाने के लिए, जनगण दे आदेश​
    *
    पिठ्ठू है सरकार यह, अमरीका की मीत
    उसके हित की नीतियाँ, गा रही गीत
    *
    पिट्ठू है सरकार यह, अमरीका की मीत
    उसके हित की नीतियाँ, बना- गा रही गीत

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