मुक्तिका :
संजीव
*
खूब आरक्षण दिया है, खूब बाँटी राहतें.
झुग्गियों में जो बसे, सुधरी नहीं उनकी गतें..
*
सडक पर ले पादुका अभिषेक करतीं बेटियां
संजीव
*
खूब आरक्षण दिया है, खूब बाँटी राहतें.
झुग्गियों में जो बसे, सुधरी नहीं उनकी गतें..
*
सडक पर ले पादुका अभिषेक करतीं बेटियां
शोहदों की सुधरती ही नहीं फिर भी हरकतें
*
थक गए उपदेश देकर, संत मुल्ला पादरी.
सुन रहे प्रवचन मगर, छोड़ें नहीं श्रोता लतें.
*
बदनीयत होकर ज़माना खुश न अब तक हो सका *
थक गए उपदेश देकर, संत मुल्ला पादरी.
सुन रहे प्रवचन मगर, छोड़ें नहीं श्रोता लतें.
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नेक नीयत से 'सलिल' ने पाई हरदम बरकतें.
*
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नींव में पड़ता नहीं चुपचाप रहकर यदि 'सलिल'
कहें तो किस तरह मिलतीं सर छिपाने को छतें.
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Kusum Vir via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंसडक पर ले पादुका अभिषेक करतीं बेटियां
शोहदों की सुधरती ही नहीं फिर भी हरकतें
थक गए उपदेश देकर, संत मुल्ला पादरी.
सुन रहे प्रवचन मगर, छोड़ें नहीं श्रोता लतें.
आचार्य जी I
क्या बात ! क्या बात ! क्या बात !
कितनी सामयिक, सटीक और यथार्थ बात कही है आपने I
कृपया सराहना स्वीकारें I
सादर,
कुसुम वीर
Indira Sharma via yahoogroups.compindira77@gmail.com
जवाब देंहटाएंआदरणीय संजीव जी ,मुक्तिकाएँ लिखनें में तो आप माहिर हैं ,अपने में पूर्ण और मनभावनी लगती हैं| सराहना स्वीकार करें |
इंदिरा
Pranava Bharti via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंवाह ! क्या बात है !!!!!
सुंदर
प्रणव
जवाब देंहटाएंसंजीव जी,
सच बहुत प्यारी मुक्तिकएं
साधुवाद,
शिशिर
जवाब देंहटाएंलाजवाब मुक्तिकाएँ , प्रतिष्ठित कवि की कलम से !
नमन !
सादर,
दीप्ति