व्यंग्य गीत:
हम सर्वोत्तम…
संजीव
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हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
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चमत्कार की कथा सुनाएँ,
पत्थर को भी शीश नवाएँ।
लाख कमा चोरी-रिश्वत से-
प्रभु को एक चढ़ा बच जाएँ।
पाप करें, ले नाम पुण्य का
तनिक नहीं होता पल भर गम
हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
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हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
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श्रम-कोशिश पर नहीं भरोसा,
किस्मत को हर पल मिल कोसा।
जोड़-तोड़, हेरा-फेरी को-
लाड-प्यार से पाला-पोसा।
मौज-मजा-मस्ती के पीछे
भागे ढोल बजाते ढम-ढम
हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
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हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
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भाषण-वीर न हमसा कोई,
आश्वासन की फसलें बोई।
अफसरशाही ऐश कर रही-
मुफलिस जनता पल-पल रोई।
रोटी नहीं?, पेस्ट्री खालो-
सुख के साथ मानते हैं गम।
हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
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हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
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सस्ती औषधि हमें न भाती,
डॉक्टर यम के मित्र-संगाती।
न्यायालय छोड़ें अपराधी-
हैं वकील चोरों के साथी।
बनें बाद में, पहलें टूटें
हैं निर्माण भले ही बेदम
हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
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हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
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कोई नंगा मजबूरी में,
कोई नंगा मगरूरी में।
दूरी को दें नाम निकटता-
कहें निकटता है दूरी में।
सात जन्म का बंधन तोड़ें
पल में गर पाते दहेज़ कम
हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
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हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
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ठाकुरसुहाती हमको भाती,
सत्य न कोई बात सुहाती।
गैरों का सुख अपना मानें-
निज दुःख बाँट न करें दुभांती।
घड़ियाली आँसू से रहती
आँख हमारी हरदम ही नम
हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
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हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
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सुर नर असुर नाम कुछ भी दो,
अनाचार हम नहीं तजेंगे।
जयमाला हित फूल उगाये-
जो ठठरी पर वही सजेंगे।
सीता तज दें, द्रुपदसुता का
चीर खींच लें फैला जाजिम
हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
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हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
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Sanjiv verma 'Salil'
Kusum Vir via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी,
आपके इस सजीव, सामयिक, यथार्थमय गीत को पढ़कर मैं पूर्णत: नि:शब्द हूँ l
मेरे पास शब्द नहीं हैं आपकी इस रचना की सराहना के लिए l
अद्भुत l बस अद्भुत !
सादर,
कुसुम वीर
Mahipal Tomar via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंचूँकि जब ये सब पसर रहा था ,तब हम अपनी सुविधाओं को त्यागना नहीं चाहते थे ,और जब पानी सर के ऊपर से निकल रहा है तो ' घबराहट ' और ' साँस ' घुटती महसूस हो रही है ,आपकी ' अभिव्यक्ति ' श्लाघनीय है ,उसके लिए बधाई / संजीव जी / और मूल में जो इस भारत की दम है वह सर्वोत्तम ,सर्वोत्तम और सर्वोत्तम ,नहीं तो कश्मीर ,अरुणाचल इनके लिए केवल और केवल जमीं के टुकड़े भर हैं प्रतिष्ठा / अस्मिता / राष्ट्रीय-गौरव ; के विषय नहीं वरन मिथ्या और मिथ्या हैं ?
सादर ,
महिपाल
Kiran Sinha
जवाब देंहटाएंAdarniye Sanjeev ji,
apke geet ne to kamal kar diya . samajik our rajniti roop ka sakxat darshan sambhav hua.
Aapki lekhani ko naman.
Sader
KIran Sinha
Indira Sharma via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंआदरणीय संजीव जी , क्या बढ़िया तंज है | रचना बहुत बढ़िया लगी | सराहना सहित ,इंदिरा
दिद्दा के आशीष से मन को होता हर्ष
जवाब देंहटाएंसावन भावन आ गया लेकर नव उत्कर्ष
Pranava Bharti via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंआ. आचार्य जी !
व्यंग्य -रचना हेतु अत्यंत साधुवाद!
हम सर्वोत्तम,हम ही उत्तम ,
छिप-छिप करते सभी कुकर्म !
फिर भी
हम सर्वोत्तम ,हम ही उत्तम !!
सादर
प्रणव
Mahesh Dewedy via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंसलिल जी,
सार्थक एवँ सत्य को उजागर करती व्यंग्य रचना. बधाई.
एक अन्य गुण भी है- फौज के मार्च की ध्वनि बन सकती है.
महेश चंद्र द्विवेदी
madhuvmsd@gmail.com
जवाब देंहटाएंसंजीव जी
तीर सही निशाने पर दागा आपने , बहुत सटीक बहुत उतम अब हम कहें आप सर्वोतम !
मधु
मधु सर्वोत्तम, मधु सर्वोत्तम…
जवाब देंहटाएंहमारी भी जय-जय
तुम्हारी भी जय-जय
Prakash Govind via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंचमत्कार की कथा सुनाएँ,
पत्थर को भी शीश नवाएँ।
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श्रम-कोशिश पर नहीं भरोसा,
किस्मत को हर पल मिल कोसा।
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भाषण-वीर न हमसा कोई,
आश्वासन की फसलें बोई।
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कोई नंगा मजबूरी में,
कोई नंगा मगरूरी में।
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आदरणीय संजीव 'सलिल' जी
आज के यथार्थ पर तंज कसती बेहतरीन रचना है
रचना का हर पद बहुत पसंद आया
बहुत बहुत बधाई
आभार
Kanu Vankoti
जवाब देंहटाएंकिस्मत को हर पल मिल कोसा।
ऊपर की पंक्ति से याद आया कि माँ हमेशा कहती हैं कि '' कोसना और क्रोध '' दो बहुत बड़ी बीमारी हैं जिससे कई लोग ग्रसित होते हैं । इनसे जितना हो सके दूर रहना चाहिए क्योंकि कोसने से और क्रोध से कभी कोई काम नही बना बल्कि बिगड़े ही हैं चाहे वे काम परिवार के हो या देश के । हमें गांधी को याद रखना चाहिए कि उन्होंने क्रोध न करते हुए किस तरह अक्ल और समझदारी से विजय पाई और देश को आजादी दिलाने जैसा महान कार्य किया । हाल ही में अमिताभ जी ने भी यह बात हम सब तक पहुँचाई थी ।
सादर
कनु
आपकी पारखी दृष्टि को नमन.
जवाब देंहटाएंTanuja Vyas tanuja.vyas@yahoo.in via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंबहूत ही अछी पंक्तिया जीवन का साश्वत सच और अकर्मण्यता पर ध्यान जाता है
सादर:
तनूजा व्यास