गुरुवार, 4 जुलाई 2013

doha salila : pranav bharti

doha salila

pratinidhi doha kosh 2-  

purnima barman, sharjah  

प्रतिनिधि दोहा कोष:2

 इस स्तम्भ के अंतर्गत आप पढ़ चुके हैं सर्व श्री/श्रीमती  नवीन सी. चतुर्वेदी तथा पूर्णिमा बर्मन के दोहे। आज अवगाहन कीजिए प्रणव भारती रचित दोहा सलिला में :
:
प्रणव भारती
*
मानव ज्ञानी है नहीं, ज्ञानी केवल आप 
तथ्य न जो यह मानता, वह करता है पाप  
प्रभु! तेरे दरबार में, मांगूं सबकी खैर
प्रणव नहीं मन में करूँ, कभी किसी से बैर
आस-दिया रवि ने जला, दिया उजाला-ताप 
तूने द्वार ढुका दिए  ,भर मन में संताप

-मन तो जाने बावरा ,मन की कहाँ बिसात
 मन ही मन फूला फिरे ,कहे न असली बात
प्रेम सभी को चाहिए, प्रेम मिले बिन मोल
प्रेम बिना जीवन नहीं, प्रेम कभी मत तोल
संवेदन तुलता नहीं ,जीवन के बाज़ार 
 संवेदन जो तोलता ,वह जीवन बेकार  

चन्दा सा मुखड़ा लिए, हँसी- खुला अध्याय
जब समीप आने कहूँ ,भागे कहकर 'बाय'

माटी के तन में रहे, सोने जैसा मन
जो चाहे सबका भला, रोये न उसका मन
*

2 टिप्‍पणियां:

  1. aapki har rachna lajwab hoti hai ab en doho ko hi dekhiye kitne sundar hain
    badhai bahut bahut badhai

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  2. आपकी गुण ग्राहकता को नमन। सराहनेवाले न हों रचना का सौंदर्य कैसे निखर सकता है?

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