दोहा सलिला:
संजीव
लोकतंत्र
*
लोक तंत्र की मांग है, ताकतवर हो लोक।
तंत्र भार हो लोक पर, तो निश्चय हो शोक। ।
*
लोभ तंत्र ने रख लिया, लोक तंत्र का वेश।
शोक तंत्र की जड़ जमी, कर दूषित परिवेश।।
*
क्या कहता है लोक-मत, सुन-समझे सरकार।
तदनुसार जन-नीति हो, सभी करें स्वीकार।।
*
लोक तंत्र में लोक की, तंत्र न सुनाता पीर।
रुग्ण व्यवस्था बदल दे, क्यों हो लोक अधीर।।
*
लोक तंत्र को दे सके, लोक-सूर्य आलोक।
जन प्रतिनिधि हों चन्द्र तो, जगमग हो भू लोक।।
===
प्रजा तंत्र
*
प्रजा तंत्र है प्रजा का, प्रजा हेतु उपहार।
सृजा प्रजा ने ही इसे, करने निज उपकार।।
*
प्रजा करे मतदान पर, करे नहीं मत-दान।
चुनिए अच्छे व्यक्ति को, दल दूषण की खान।।
*
तंत्र प्रजा का दास है, प्रजा सत्य ले जान।
प्रजा पालती तंत्र को, तंत्र तजे अभिमान।।
*
सुख-सुविधा से हो रहे, प्रतिनिधि सारे भ्रष्ट।
श्रम कर पालें पेट तो, पाप सभी हों नष्ट।।
*
प्रजा न हो यदि एकमत, खो देती निज शक्ति।
हावी होते सियासत-तंत्र, मिटे राष्ट्र-अनुरक्ति।।
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संजीव
लोकतंत्र
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लोक तंत्र की मांग है, ताकतवर हो लोक।
तंत्र भार हो लोक पर, तो निश्चय हो शोक। ।
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लोभ तंत्र ने रख लिया, लोक तंत्र का वेश।
शोक तंत्र की जड़ जमी, कर दूषित परिवेश।।
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क्या कहता है लोक-मत, सुन-समझे सरकार।
तदनुसार जन-नीति हो, सभी करें स्वीकार।।
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लोक तंत्र में लोक की, तंत्र न सुनाता पीर।
रुग्ण व्यवस्था बदल दे, क्यों हो लोक अधीर।।
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लोक तंत्र को दे सके, लोक-सूर्य आलोक।
जन प्रतिनिधि हों चन्द्र तो, जगमग हो भू लोक।।
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प्रजा तंत्र
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प्रजा तंत्र है प्रजा का, प्रजा हेतु उपहार।
सृजा प्रजा ने ही इसे, करने निज उपकार।।
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प्रजा करे मतदान पर, करे नहीं मत-दान।
चुनिए अच्छे व्यक्ति को, दल दूषण की खान।।
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तंत्र प्रजा का दास है, प्रजा सत्य ले जान।
प्रजा पालती तंत्र को, तंत्र तजे अभिमान।।
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सुख-सुविधा से हो रहे, प्रतिनिधि सारे भ्रष्ट।
श्रम कर पालें पेट तो, पाप सभी हों नष्ट।।
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प्रजा न हो यदि एकमत, खो देती निज शक्ति।
हावी होते सियासत-तंत्र, मिटे राष्ट्र-अनुरक्ति।।
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Kanu Vankoti
जवाब देंहटाएंआदरणीय संजीव जी,
इस उत्तम रचना के लिए सराहना स्वीकार करे,
सादर,
कनु
Kusum Vir via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएं// लोभ तंत्र ने रख लिया, लोक तंत्र का वेश।
शोक तंत्र की जड़ जमी, कर दूषित परिवेश।।
सुख-सुविधा से हो रहे, प्रतिनिधि सारे भ्रष्ट।
श्रम कर पालें पेट तो, पाप सभी हों नष्ट।।
आदरणीय आचार्य जी,
अद्भुत !
बहुत ही सामयिक और सटीक दोहे लिखे हैं आपने l
बहुत बधाई और सराहना l
सादर,
कुसुम वीर
Pranava Bharti via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंआ.सलिल जी !
अत्यन्त साधुवाद
थुल थुल उनके पेट हैं, भटके हुए विचार
भीतर शेर बनें रहें ,बाहर खाएँ मार !!
सादर
प्रणव
kusum sinha
जवाब देंहटाएंpriy sanjiv jee
bahut sundar ati sundar doho ke liye dher si badhai sweekar karen
Mukesh Srivastava
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी,
सभी दोहे एक से बढ़कर एक, सबसे अच्छा यह लगा -
गत-आगत दो तीर हैं, आज सलिल की धार।
भाग्य नाव खेत मनुज, थाम कर्म-पतवार।।
ढेर सराहना के साथ,
मुकेश
जवाब देंहटाएंकामयाब समसामयिक दोहे .
साधुवाद,
शिशिर
जवाब देंहटाएंलोक तंत्र में लोक की, तंत्र न सुनाता पीर।
रुग्ण व्यवस्था बदल दे, क्यों हो लोक अधीर।।
*
लोक तंत्र को दे सके, लोक-सूर्य आलोक।
जन प्रतिनिधि हों चन्द्र तो, जगमग हो भू लोक।। आमीन !
सादर
शिशिर
Madhu Gupta via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंसंजीवजी
लोकतंत्र प्रजातंत्र सब हुए विलीन ,
अब तो बस मन्त्र एक है
सुनलो मन के मीत
दींन-हीन पार्टियों के मंत्री बनों
संत्रीयों को पीट |
आज के हालात पर दोहे बहुत अच्छे लगे . काश आप जैसे वहाँ पार्लियामेंट में बैठते और नेतायों( भोग्तायों ) को दर्पण दिखा सकते , आज कल तो सिर्फ एक करेंसी चलती है राजनिति के नाम पर राज भोग मिलता है , प्रजातंत्र जिसको देश के लिए वरदान माना जाना चाहिए वो ही भस्मासुर बन गया है | वोट की निति अनीति में परिवर्तित हो गयी है |
सादर
मधु