शनिवार, 27 जुलाई 2013

doha salila: loktantra / prajatantra -sanjiv

दोहा सलिला:
संजीव
लोकतंत्र
*
लोक तंत्र की मांग है, ताकतवर हो लोक। 
तंत्र भार हो लोक पर, तो निश्चय हो शोक। ।
*
लोभ तंत्र ने रख लिया, लोक तंत्र का वेश।
शोक तंत्र की जड़ जमी, कर दूषित परिवेश।।
*
क्या कहता है लोक-मत, सुन-समझे सरकार।
तदनुसार जन-नीति हो, सभी करें स्वीकार।।
*
लोक तंत्र में लोक की, तंत्र न सुनाता पीर।
रुग्ण व्यवस्था बदल दे, क्यों हो लोक अधीर।।
*
लोक तंत्र को दे सके, लोक-सूर्य आलोक।
जन प्रतिनिधि हों चन्द्र तो, जगमग हो भू लोक।।
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प्रजा तंत्र
*
प्रजा तंत्र है प्रजा का, प्रजा हेतु उपहार।
सृजा प्रजा ने ही इसे, करने निज उपकार।।
*
प्रजा करे मतदान पर, करे नहीं मत-दान।
चुनिए अच्छे व्यक्ति को, दल दूषण की खान।।
*
तंत्र प्रजा का दास है, प्रजा सत्य ले जान।
प्रजा पालती तंत्र को, तंत्र तजे अभिमान।।
*
सुख-सुविधा से हो रहे, प्रतिनिधि सारे भ्रष्ट।
श्रम कर पालें पेट तो, पाप सभी हों नष्ट।।
*
प्रजा न हो यदि एकमत, खो देती निज शक्ति।
हावी होते सियासत-तंत्र, मिटे राष्ट्र-अनुरक्ति।।
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8 टिप्‍पणियां:

  1. Kanu Vankoti

    आदरणीय संजीव जी,

    इस उत्तम रचना के लिए सराहना स्वीकार करे,

    सादर,
    कनु

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  2. Kusum Vir via yahoogroups.com

    // लोभ तंत्र ने रख लिया, लोक तंत्र का वेश।
    शोक तंत्र की जड़ जमी, कर दूषित परिवेश।।

    सुख-सुविधा से हो रहे, प्रतिनिधि सारे भ्रष्ट।
    श्रम कर पालें पेट तो, पाप सभी हों नष्ट।।

    आदरणीय आचार्य जी,
    अद्भुत !
    बहुत ही सामयिक और सटीक दोहे लिखे हैं आपने l
    बहुत बधाई और सराहना l
    सादर,
    कुसुम वीर

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  3. Pranava Bharti via yahoogroups.com

    आ.सलिल जी !
    अत्यन्त साधुवाद
    थुल थुल उनके पेट हैं, भटके हुए विचार
    भीतर शेर बनें रहें ,बाहर खाएँ मार !!
    सादर
    प्रणव

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  4. kusum sinha

    priy sanjiv jee
    bahut sundar ati sundar doho ke liye dher si badhai sweekar karen

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  5. Mukesh Srivastava

    आदरणीय आचार्य जी,

    सभी दोहे एक से बढ़कर एक, सबसे अच्छा यह लगा -

    गत-आगत दो तीर हैं, आज सलिल की धार।
    भाग्य नाव खेत मनुज, थाम कर्म-पतवार।।

    ढेर सराहना के साथ,

    मुकेश

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  6. कामयाब समसामयिक दोहे .

    साधुवाद,
    शिशिर

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  7. लोक तंत्र में लोक की, तंत्र न सुनाता पीर।
    रुग्ण व्यवस्था बदल दे, क्यों हो लोक अधीर।।
    *
    लोक तंत्र को दे सके, लोक-सूर्य आलोक।
    जन प्रतिनिधि हों चन्द्र तो, जगमग हो भू लोक।। आमीन !

    सादर
    शिशिर

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  8. Madhu Gupta via yahoogroups.com

    संजीवजी
    लोकतंत्र प्रजातंत्र सब हुए विलीन ,
    अब तो बस मन्त्र एक है
    सुनलो मन के मीत
    दींन-हीन पार्टियों के मंत्री बनों
    संत्रीयों को पीट |
    आज के हालात पर दोहे बहुत अच्छे लगे . काश आप जैसे वहाँ पार्लियामेंट में बैठते और नेतायों( भोग्तायों ) को दर्पण दिखा सकते , आज कल तो सिर्फ एक करेंसी चलती है राजनिति के नाम पर राज भोग मिलता है , प्रजातंत्र जिसको देश के लिए वरदान माना जाना चाहिए वो ही भस्मासुर बन गया है | वोट की निति अनीति में परिवर्तित हो गयी है |
    सादर
    मधु

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