दोहा सलिला:
घर-घर धर हिंदी कलश...
संजीव
*
घर-घर धर हिंदी कलश, हिंदी-मन्त्र उचार.
हिन्दवासियों का 'सलिल', हिंदी से उद्धार..
*
दक्षिणभाषी सीखते, हिंदी स्नेह समेत.
उनकी भाषा सीख ले, होकर 'सलिल' सचेत..
*
हिंदी मैया- मौसियाँ, भाषा-बोली अन्य.
मातृ-भक्ति में रमा रह, मौसी होगी धन्य..
*
पशु-पक्षी तक बोलते, अपनी भाषा मीत.
निज भाषा भूलते, कैसी अजब अनीत??
*
माँ को आदर दे नहीं, मौसी से जय राम.
करे जगत में हो हँसी, माया मिली न राम..
*
घर-घर धर हिंदी कलश...
संजीव
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घर-घर धर हिंदी कलश, हिंदी-मन्त्र उचार.
हिन्दवासियों का 'सलिल', हिंदी से उद्धार..
*
दक्षिणभाषी सीखते, हिंदी स्नेह समेत.
उनकी भाषा सीख ले, होकर 'सलिल' सचेत..
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हिंदी मैया- मौसियाँ, भाषा-बोली अन्य.
मातृ-भक्ति में रमा रह, मौसी होगी धन्य..
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पशु-पक्षी तक बोलते, अपनी भाषा मीत.
निज भाषा भूलते, कैसी अजब अनीत??
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माँ को आदर दे नहीं, मौसी से जय राम.
करे जगत में हो हँसी, माया मिली न राम..
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deepti gupta via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंसंजीव जी,
बहुत रुचिकर और प्यारी रचना .....
ढेर सराहना,,,
सादर,
दीप्ति
Kusum Vir via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंमाँ को आदर दे नहीं, मौसी से जय राम.
करे जगत में हो हँसी, माया मिली न राम..
बहुत सुन्दर दोहा आचार्य जी l
सादर,
कुसुम वीर