चित्र पर कविता :
प्राकृतिक के समय अत्यंत संयम के साथ अनजानों की सहायता कर रहे सैनिकों के योगदान आपको कुछ कहने को प्रेरित करे तो लिख भेजें भावनाएँ:


दोहा सलिला:
संजीव
*
वन काटे पर्वत मिटा, मनुज बुलाये काल।
कुपित प्रकृति-लीला लखे, हुआ नष्ट बेहाल।।
सम्हल न कर निज नाश अब, न कर प्रकृति का नाश।
वर्ना झेल न पायेगा, हो जब प्रलय-विनाश।।
करनी का फल भोगता मनुज, देव हैं मौन।
आपद की इस घड़ी में, रक्षक होगा कौन??
मनुज-मनुज का साथ दे, भूल जाति या धर्म।
साँझा सुख-दुःख ही 'सलिल', है जीवन का मर्म।।
करें स्वयं सेवक सदा, सेवा रख अनुराग।
वन्दनीय है कार्य यह, श्रेष्ठ नहीं वैराग।।
नेता-अफसर सो रहे, सैनिक आते काम।
उनको ठेंगा दिखाकर, इनको करो सलाम।।
कठिन परीक्षा की घड़ी, संयम रखी मित्र।
संग प्रकृति के जियें हम, तब बदलेगा चित्र।।
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प्राकृतिक के समय अत्यंत संयम के साथ अनजानों की सहायता कर रहे सैनिकों के योगदान आपको कुछ कहने को प्रेरित करे तो लिख भेजें भावनाएँ:
दोहा सलिला:
संजीव
*
वन काटे पर्वत मिटा, मनुज बुलाये काल।
कुपित प्रकृति-लीला लखे, हुआ नष्ट बेहाल।।
सम्हल न कर निज नाश अब, न कर प्रकृति का नाश।
वर्ना झेल न पायेगा, हो जब प्रलय-विनाश।।
करनी का फल भोगता मनुज, देव हैं मौन।
आपद की इस घड़ी में, रक्षक होगा कौन??
मनुज-मनुज का साथ दे, भूल जाति या धर्म।
साँझा सुख-दुःख ही 'सलिल', है जीवन का मर्म।।
करें स्वयं सेवक सदा, सेवा रख अनुराग।
वन्दनीय है कार्य यह, श्रेष्ठ नहीं वैराग।।
नेता-अफसर सो रहे, सैनिक आते काम।
उनको ठेंगा दिखाकर, इनको करो सलाम।।
कठिन परीक्षा की घड़ी, संयम रखी मित्र।
संग प्रकृति के जियें हम, तब बदलेगा चित्र।।
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pravin
जवाब देंहटाएंIsika fal utaranchl ko bhugatna pad raha hai ! Hai na!
pravin ji
जवाब देंहटाएंapka anumaan sahee hai. Yah aur aise hee anya hadase manushya ke duraacharan ka hee fal hain kintu ham dosh niyati ko dete hain aur kuchh naheen seekhte.