शुक्रवार, 31 मई 2013

hindi lyric: rachna aur rachiyata acharya sanjiv verma 'salil'

रचना और रचयिता: संजीव 'सलिल'

रचना और रचयिता:




संजीव 'सलिल'
*
किस रचना में नही रचयिता,
कोई मुझको बतला दो.
मात-पिता बेटे-बेटी में-
अगर न हों तो दिखला दो...
*




*

बीज हमेशा रहे पेड़ में,
और पेड़ पर फलता बीज.
मुर्गी-अंडे का जो रिश्ता
कभी न किंचित सकता छीज..
माया-मायापति अभिन्न हैं-
नियति-नियामक जतला दो...
*





*

कण में अणु है, अणु में कण है
रूप काल का- युग है, क्षण है.
कंकर-शंकर एक नहीं क्या?-
जो विराट है, वह ही तृण  है..
मत भरमाओ और न भरमो-
सत-शिव-सुन्दर सिखला दो...
*




*
अक्षर-अक्षर शब्द समाये.
शब्द-शब्द अक्षर हो जाये.
भाव बिम्ब बिन रहे अधूरा-
बिम्ब भाव के बिन मर जाये.
साहुल राहुल तज गौतम हो
बुद्ध, 'सलिल' मत झुठला दो...


 
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Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in

9 टिप्‍पणियां:

  1. deepti gupta via yahoogroups.com

    क्या बात है .......! बहुत...बहुत......बहुत उत्तम !

    सादर,
    दीप्ति

    जवाब देंहटाएं
  2. ___
    vijay3@comcast.net@yahoogroups.com

    अति सुन्दर!अति सुन्दर!

    विजय

    जवाब देंहटाएं
  3. Kanu Vankoti

    संजीव भाई..

    *=D> applause *=D> applause *=D> applause

    सादर,
    कनु

    जवाब देंहटाएं
  4. achal verma

    रचना देखूँ तभी रचयिता याद आता है
    और देखने से लगता है पास आता है
    पर जिस छण भी नयन हटा लेता रचना से
    जाने झट से कितनी दूर चला जाता है ॥
    यही ध्यान में एक कमी है
    रचना से ही शृष्टि थमी है ॥ ....अचल....

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  5. संजीव भाई बहुत बहुत सुन्दर , कोई इनकी धुन बनाए | दिद्दा

    जवाब देंहटाएं
  6. Santosh Bhauwala via yahoogroups.com

    आदरणीय संजीव जी ,

    रचना और रचयिता का का रिश्ता अभिन्न है आपने बखूबी बयां किया है साधुवाद !!

    संतोष भाऊवाला

    जवाब देंहटाएं
  7. shar_j_n

    आदरणीय आचार्य जी ,
    जो विराट है, वह ही तृण है.. --- कितना सुन्दर!

    साहुल राहुल तज गौतम हो --- यहाँ साहुल ?
    सदर शार्दुला

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  8. शार्दूला जी
    आपकी विवेचना और सजगता से कुछ नया रचने की प्रेरणा मिलती है। धन्यवाद।
    राहुल = बाधा।
    साहुल = एक उपकरण जिसका प्रयोग कर राज मिस्त्री दीवार या खम्भे की सीध नापते हैं।
    यहाँ भावार्थ में उपयोग चाह की राह में बाधा तथा पूर्व निर्धरित लीक की सीध में चलने को तजकर अर्थात परंपरा तोड़कर

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  9. Kusum Vir via yahoogroups.com

    जीवन के गूढ़ रहस्यों को कितने सुन्दर तरीके से वर्णित किया है आपने आचार्य जी l
    अति सुन्दर l
    कुसुम वीर

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