रचना और रचयिता: संजीव 'सलिल'
संजीव 'सलिल'
*
किस रचना में नही रचयिता,
कोई मुझको बतला दो.
मात-पिता बेटे-बेटी में-
अगर न हों तो दिखला दो...
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बीज हमेशा रहे पेड़ में,
और पेड़ पर फलता बीज.
मुर्गी-अंडे का जो रिश्ता
कभी न किंचित सकता छीज..
माया-मायापति अभिन्न हैं-
नियति-नियामक जतला दो...
*
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कण में अणु है, अणु में कण है
रूप काल का- युग है, क्षण है.
कंकर-शंकर एक नहीं क्या?-
जो विराट है, वह ही तृण है..
मत भरमाओ और न भरमो-
सत-शिव-सुन्दर सिखला दो...
*
अक्षर-अक्षर शब्द समाये.
शब्द-शब्द अक्षर हो जाये.
भाव बिम्ब बिन रहे अधूरा-
बिम्ब भाव के बिन मर जाये.
साहुल राहुल तज गौतम हो
बुद्ध, 'सलिल' मत झुठला दो...
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Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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deepti gupta via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंक्या बात है .......! बहुत...बहुत......बहुत उत्तम !
सादर,
दीप्ति
___
जवाब देंहटाएंvijay3@comcast.net@yahoogroups.com
अति सुन्दर!अति सुन्दर!
विजय
Kanu Vankoti
जवाब देंहटाएंसंजीव भाई..
*=D> applause *=D> applause *=D> applause
सादर,
कनु
achal verma
जवाब देंहटाएंरचना देखूँ तभी रचयिता याद आता है
और देखने से लगता है पास आता है
पर जिस छण भी नयन हटा लेता रचना से
जाने झट से कितनी दूर चला जाता है ॥
यही ध्यान में एक कमी है
रचना से ही शृष्टि थमी है ॥ ....अचल....
संजीव भाई बहुत बहुत सुन्दर , कोई इनकी धुन बनाए | दिद्दा
जवाब देंहटाएंSantosh Bhauwala via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंआदरणीय संजीव जी ,
रचना और रचयिता का का रिश्ता अभिन्न है आपने बखूबी बयां किया है साधुवाद !!
संतोष भाऊवाला
shar_j_n
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी ,
जो विराट है, वह ही तृण है.. --- कितना सुन्दर!
साहुल राहुल तज गौतम हो --- यहाँ साहुल ?
सदर शार्दुला
शार्दूला जी
जवाब देंहटाएंआपकी विवेचना और सजगता से कुछ नया रचने की प्रेरणा मिलती है। धन्यवाद।
राहुल = बाधा।
साहुल = एक उपकरण जिसका प्रयोग कर राज मिस्त्री दीवार या खम्भे की सीध नापते हैं।
यहाँ भावार्थ में उपयोग चाह की राह में बाधा तथा पूर्व निर्धरित लीक की सीध में चलने को तजकर अर्थात परंपरा तोड़कर
Kusum Vir via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंजीवन के गूढ़ रहस्यों को कितने सुन्दर तरीके से वर्णित किया है आपने आचार्य जी l
अति सुन्दर l
कुसुम वीर