मंगलवार, 21 मई 2013

hindi humourous poetry: acharya sanjiv verma 'salil'

हास्य रचना
बतलायेगा कौन?
संजीव
*
मैं जाता था ट्रेन में, लड़ा मुसाफिर एक.
पिटकर मैंने तुरत दी, धमकी रखा विवेक।।

मुझको मारा भाई को, नहीं लगाना हाथ।
पल में रख दे फोड़कर, हाथ पैर सर माथ ।।

भाई पिटा तो दोस्त का, उच्चारा था नाम।
दोस्त और फिर पुत्र को, मारा उसने थाम।।

रहा न कोई तो किया, उसने एक सवाल।
आप पिटे तो मौन रह, टाला क्यों न बवाल?

क्यों पिटवाया सभी को, क्या पाया श्रीमान?
मैं बोला यह राज है, किन्तु लीजिये जान।।

अब घर जाकर सभी को रखना होगा मौन.
पीटा मुझको किसी ने, बतलायेगा कौन??

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2 टिप्‍पणियां:

  1. Kusum Vir via yahoogroups.com

    बहुत सुन्दर हास्य रचना l
    कुसुम वीर

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  2. achal verma

    बहुत अच्छे !!!
    जहाँ हाथ लग जाय वहीं चमका दें ऐसे
    कोई विधा न बाकी हैं आचार्य जी जैसे ॥

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