चंद दोपदे -चौपदे
संजीव
*
जब जग हुआ समीप तब, पाई खुशी समीप।
खुद के हुए समीप जब, मन हो गया महीप।।
मिले समीप समीप मन, तन हो गया प्रसन्न।
अंतर से अंतर मिटा, खुशिया हैंआसन्न ..
*
ऊन न छोड़े गडरिया, भेड़ कर सके माफ़।
मांस नोच चूसे लहू, कैसे हो इन्साफ??
*
वक़्त के ज़ख्म पे मलहम भी लगाना है हमें।
चोट अपनी निरी अपनी, न दिखाना है हमें।।
सिसकियाँ कौन सुनेगा?, कहो सुनाएँ क्यों?
अश्क औरों के पोंछना, न बहाना है हमें।।
*
हर भाषा-बोली मीठी है, लेकिन मन से बोलें तो,
हर रिश्ते में प्रेम मिलेगा, मन से नाता जोड़ें तो।
कौन पराया? सब अपने हैं, यदि अपनापन बाँट सकें-
हुई अपर्णा क्यों धरती माँ?, सोचें बिरवा बोयें तो।।
*
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
संजीव
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जब जग हुआ समीप तब, पाई खुशी समीप।
खुद के हुए समीप जब, मन हो गया महीप।।
मिले समीप समीप मन, तन हो गया प्रसन्न।
अंतर से अंतर मिटा, खुशिया हैंआसन्न ..
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ऊन न छोड़े गडरिया, भेड़ कर सके माफ़।
मांस नोच चूसे लहू, कैसे हो इन्साफ??
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वक़्त के ज़ख्म पे मलहम भी लगाना है हमें।
चोट अपनी निरी अपनी, न दिखाना है हमें।।
सिसकियाँ कौन सुनेगा?, कहो सुनाएँ क्यों?
अश्क औरों के पोंछना, न बहाना है हमें।।
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हर भाषा-बोली मीठी है, लेकिन मन से बोलें तो,
हर रिश्ते में प्रेम मिलेगा, मन से नाता जोड़ें तो।
कौन पराया? सब अपने हैं, यदि अपनापन बाँट सकें-
हुई अपर्णा क्यों धरती माँ?, सोचें बिरवा बोयें तो।।
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Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
Kusum Vir via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंआदरणीय सलिल जी,
आपने बहुत ही सुन्दर, रुचिकर और मनभावन दोपदे -चौपदे लिखे हैं l
मेरे मन को अंतिम दोनों चौपदे बहुत ही भाए l
वक़्त के ज़ख्म पे मलहम भी लगाना है हमें।
चोट अपनी निरी अपनी, न दिखाना है हमें।।
सिसकियाँ कौन सुनेगा?, कहो सुनाएँ क्यों?
अश्क औरों के पोंछना, न बहाना है हमें।।
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हर भाषा-बोली मीठी है, लेकिन मन से बोलें तो,
हर रिश्ते में प्रेम मिलेगा, मन से नाता जोड़ें तो।
कौन पराया? सब अपने हैं, यदि अपनापन बाँट सकें-
हुई अपर्णा क्यों धरती माँ?, सोचें बिरवा बोयें तो।।
हम अपने जीवन को यदि सच में ऐसा बना सकें, तो यह धरती स्वर्ग हो जाए l
मैं तो कहती हूँ ;
हर भाषा में मीत मिला है
मीठी वाणी बोलो तुम
कोई नहीं पराया जग में
सबको गले लगाओ तुम
सादर,
कुसुम वीर
deepti gupta via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंमस्त हास्य रचना !
सादर,
दीप्ति
kusum sinha
जवाब देंहटाएंpriy sanjiv jee
aapki kavya pratibha ko mera shat shat naman
Madhu Gupta via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंऊन न छोड़े गडरिया ------------
बहुत गहरी सोच , ईसा मसीह की याद दिला दी आपने . बहुत सुन्दर दोपद व चौपद
मधु
deepti gupta via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंखुद के हुए समीप जब, मन हो गया महीप।।..........वाह.....वाह.....!
बढ़िया....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना....
अनु