दोहा मुक्तिका:
बांच सके तो बांच
संजीव
*
सत्य सनातन नर्मदा, बांच सके तो बांच।
मिथ्या सब मिट जाएगा, शेष रहेगा सांच।।
कथनी करनी में तनिक, करना कभी न भेद।
जो बोता पाता वही, ले कर्मों को जांच।।
साँसें अपनी मोम हैं, आसें तपती आग।
सच फौलादी कर्म ही, सह पाता है आंच।।
उसकी लाठी में नहीं, होती है आवाज़।
देख न पाते चटकता, कैसे जीवन कांच।।
जो त्यागे पाता वही, बचता मोह-विछोह।
ऐक्य द्रोह को जय करे, कहते पांडव पांच।।
*
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
बांच सके तो बांच
संजीव
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सत्य सनातन नर्मदा, बांच सके तो बांच।
मिथ्या सब मिट जाएगा, शेष रहेगा सांच।।
कथनी करनी में तनिक, करना कभी न भेद।
जो बोता पाता वही, ले कर्मों को जांच।।
साँसें अपनी मोम हैं, आसें तपती आग।
सच फौलादी कर्म ही, सह पाता है आंच।।
उसकी लाठी में नहीं, होती है आवाज़।
देख न पाते चटकता, कैसे जीवन कांच।।
जो त्यागे पाता वही, बचता मोह-विछोह।
ऐक्य द्रोह को जय करे, कहते पांडव पांच।।
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Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
achal verma
जवाब देंहटाएंवाह वाह , कितनी सुन्दरता से
आपने इतनी ऊँची बात बता दी
जो तारीफ़ के काबिल है ।