गुरुवार, 9 मई 2013

darohar sasural chalo gopal prasad vyas

धरोहर:

हास्य रचना

ससुराल चलो

गोपाल प्रसाद व्यास
*
तुम बहुत बन लिए यार संत,
अब ब्रम्हचर्य में नहीं तंत,
क्यों दंड व्यर्थ में पेल रहे,
ससुराल चलो बुद्धू बसंत।
मुख में बीड़ा, कर में गजरा,
आँखों में मस्ताना कजरा,
कुर्ते में चुन्नट डाल चलो, 
ससुराल चलो, ससुराल चलो...
*
रूखे-रूखे से बाल चलो,
पिचके-पिचके से गाल चलो,
दो-दो चश्मे, छै-छै टोनिक,
दर्जन भर साथ रुमाल चलो,
स्लीपिंग टेबलेट, अमृतधारा,
कुछ च्यवनप्राश, शोधित पारा,
थैले में सब कुछ डाल चलो,

ससुराल चलो, ससुराल चलो...
*
छोडो फ़ाइल, छोडो लैदर,
देखो कैसा जोली वैदर,
क्यों कलम अकेले रगड़ रहे?
हो जाओ वन से टूगैदर।
वे वहाँ पड़ीं, तुम यहाँ पड़े,
वे वहाँ छड़ीं, तुम यहाँ छड़े।
अर्जेंट आ गयी काल चलो,

ससुराल चलो, ससुराल चलो...
*
मम्मी के मन के मून चलो,
डैडी के अफलातून चलो.
बंडी-बंडी बुश शर्ट पहन,
चिपकी-चिपकी पतलून चलो.
सींकिया सनम, मजनू माडल ,
आँखों पर बैलों सा गोगल।
जी नहीं नमस्ते, कहो 'हलो'
ससुराल चलो, ससुराल चलो...
*
साली से गाली खाने को,
सरहज का लहजा पाने को, 
उनकी सखियों से नजर बचा,
कतराने को, इतराने को,
मनचले चलो, मन छले चलो
मन मले चलो, मन जले
भावों में लिए उबाल चलो
ससुराल चलो, ससुराल चलो...
*
लो नयी ट्यून सीखो मिस्टर,
डारा डारा डररर डररर.
फिल्मों के नए नाम रट लो, 
शौक़ीन बहुत उनकी सिस्टर।
वे शर्मीलीन, तुम शर्मीले,
मत ट्विस्ट करो ढीले-ढीले।
हो चुस्त-चपल, वाचाल चलो
ससुराल चलो, ससुराल चलो...

  



1 टिप्पणी:

  1. Kusum Vir via yahoogroups.com

    आ० सलिल जी,
    सुन्दर हास्य रचना के लिए बधाई l
    कुसुम वीर

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