सोमवार, 8 अप्रैल 2013

doha salila sanjiv 'salil'

दोहा सलिला
संजीव सलिल

ठिठुर रहा था तुम मिलीं, जीवन हुआ बसंत0
दूर हुईं पतझड़ हुआ, हेरूँ हर पल कन्त

तुम मैके मैं सासरे, हों तो हो आनंद
मैं मैके तुम सासरे, हों तो गाएँ छन्द

तू-तू मैं-मैं तभी तक, जब तक हों मन दूर
तू-मैं ज्यों ही हम हुए, साँस हुई संतूर
0
दो हाथों में हाथ या, लो हाथों में हाथ
अधरों पर मुस्कान हो, तभी सार्थक साथ
0
नयन मिला छवि बंदकर, मून्दे नयना-द्वार
जयी चार, दो रह गये, नयना खुद को हार
000

5 टिप्‍पणियां:

  1. Om Prakash Tiwari yahoogroups.com

    तुम मैके मैं सासरे, हों तो हो आनंद.
    मैं मैके तुम सासरे, हों तो गाएँ छन्द.

    मतलब यह, कि पीछा नहीं छोड़ना है । वाह । बधाई ।
    सादर
    ओमप्रकाश तिवारी

    --

    Om Prakash Tiwari

    Chief of Mumbai Bureau

    Dainik Jagran

    41, Mittal Chambers, Nariman Point,
    Mumbai- 400021

    Tel : 022 30234900 /30234913/39413000
    Fax : 022 30234901
    M : 098696 49598
    Visit my blogs : http://gazalgoomprakash.blogspot.com/
    http://navgeetofopt.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  2. sn Sharma द्वारा yahoogroups.com

    वाह आचार्य जी ,
    मन मुग्ध कर गए ये वासन्ती दोहे।
    विशेष-
    "तुम मैके मैं सासरे, हों तो हो आनंद.
    मैं मैके तुम सासरे, हों तो गाएँ छन्द."

    वाह क्या खूब " दुहूँ हाथ मुद-मोदक पाए/ खाए गाये और अघाये।
    सादर
    कमल

    जवाब देंहटाएं
  3. dada ke raaj men donon hath laddo ka sukh anujon ko milna hee chahiye.

    जवाब देंहटाएं
  4. - madhuvmsd@gmail.com


    आ. जी
    कितने प्यारे दोहे कितने मधुर ये भाव
    जो पढ़े वो मुग्ध हो , जिन पाये तार जाए
    मधु

    जवाब देंहटाएं
  5. sn Sharma द्वारा yahoogroups.com

    धन्य है संजीव जी,
    अद्याक्षरी कविता का सरस दोहों में एक नया प्रयोग।
    आपकी विलक्षण क्षमता को नमन।

    सादर
    कमल

    जवाब देंहटाएं