दोहा सलिला
संजीव सलिल
०
ठिठुर रहा था तुम मिलीं, जीवन हुआ बसंत0
दूर हुईं पतझड़ हुआ, हेरूँ हर पल कन्त
०
तुम मैके मैं सासरे, हों तो हो आनंद
मैं मैके तुम सासरे, हों तो गाएँ छन्द
०
तू-तू मैं-मैं तभी तक, जब तक हों मन दूर
तू-मैं ज्यों ही हम हुए, साँस हुई संतूर
0
दो हाथों में हाथ या, लो हाथों में हाथ
अधरों पर मुस्कान हो, तभी सार्थक साथ
0
नयन मिला छवि बंदकर, मून्दे नयना-द्वार
जयी चार, दो रह गये, नयना खुद को हार
000
संजीव सलिल
०
ठिठुर रहा था तुम मिलीं, जीवन हुआ बसंत0
दूर हुईं पतझड़ हुआ, हेरूँ हर पल कन्त
०
तुम मैके मैं सासरे, हों तो हो आनंद
मैं मैके तुम सासरे, हों तो गाएँ छन्द
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तू-तू मैं-मैं तभी तक, जब तक हों मन दूर
तू-मैं ज्यों ही हम हुए, साँस हुई संतूर
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दो हाथों में हाथ या, लो हाथों में हाथ
अधरों पर मुस्कान हो, तभी सार्थक साथ
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नयन मिला छवि बंदकर, मून्दे नयना-द्वार
जयी चार, दो रह गये, नयना खुद को हार
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Om Prakash Tiwari yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंतुम मैके मैं सासरे, हों तो हो आनंद.
मैं मैके तुम सासरे, हों तो गाएँ छन्द.
मतलब यह, कि पीछा नहीं छोड़ना है । वाह । बधाई ।
सादर
ओमप्रकाश तिवारी
--
Om Prakash Tiwari
Chief of Mumbai Bureau
Dainik Jagran
41, Mittal Chambers, Nariman Point,
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sn Sharma द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंवाह आचार्य जी ,
मन मुग्ध कर गए ये वासन्ती दोहे।
विशेष-
"तुम मैके मैं सासरे, हों तो हो आनंद.
मैं मैके तुम सासरे, हों तो गाएँ छन्द."
वाह क्या खूब " दुहूँ हाथ मुद-मोदक पाए/ खाए गाये और अघाये।
सादर
कमल
dada ke raaj men donon hath laddo ka sukh anujon ko milna hee chahiye.
जवाब देंहटाएं- madhuvmsd@gmail.com
जवाब देंहटाएंआ. जी
कितने प्यारे दोहे कितने मधुर ये भाव
जो पढ़े वो मुग्ध हो , जिन पाये तार जाए
मधु
sn Sharma द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंधन्य है संजीव जी,
अद्याक्षरी कविता का सरस दोहों में एक नया प्रयोग।
आपकी विलक्षण क्षमता को नमन।
सादर
कमल