मंगलवार, 12 मार्च 2013

poetry: yamuna pollution

कविता - प्रति कविता 
संतोष कुमार सिंह - संजीव 'सलिल'
*
मित्रो, "यमुना बचाओ, ब्रज बचाओ" पद यात्रा दिल्ली में घुसने नहीं दी जा रही है।
दिल्ली बार्डर पर रोक दी गई है। यानि कि यमुना प्रदूषण के प्रति केन्द्रीय
सरकार भी सजग नहीं दिखती। जब कि यमुना की दु्र्दशा अत्यन्त भयावह है।
एक दिन मैं यमुना किनारे बैठा हुआ था। उस समय का एक चित्रण देखें -
                   यमुना जी की पीर
                                  संतोष कुमार सिंह 
जल की दुर्गति देख-देख कर भाव दुःखों का झलक उठा।
यमुना जी की पीर सुनी तो, नीर नयन से छलक उठा।।
 
मैया बोली निर्मलता तो, सबने देखी भाली है।
शहर-शहर के पतनालों ने, अब दुर्गति कर डाली है।।
जल से अति दुर्गन्ध उठी जब, मेरा माथा ठनक उठा।
यमुना जी की पीर सुनी तो, नीर नयन से छलक उठा।।
 
भक्त न कोई करे आचमन, जीव नीर में तैर रहे।
मेरी तो अभिलाषा प्रभु से, सब भक्तों की खैर रहे।।
तभी तैरती लाशें आयीं, रहा नयन का पलक उठा।
यमुना जी की पीर सुनी तो, नीर नयन से छलक उठा।।
 
यूँ तो मेरा पूजन अब भी, नित्य यहाँ होता रहता।
लेकिन घोर प्रदूषण में रह, दिल अपना रोता रहता।।
कूड़ा-कर्कट, झाग दिखे तो, दिल अचरज से धड़क उठा।
यमुना जी की पीर सुनी तो, नीर नयन से छलक उठा।।
 
ऐसा लगता भारतवासी, सब स्वारथ में चूर हुए।
मेरी पावनता लौटाने, शासन कब मजबूर हुए।।
मरी मछलियाँ तीर दिखीं तो, धीर हृदय का धमक उठा।
यमुना जी की पीर सुनी तो, नीर नयन से छलक उठा।।
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santosh kumar <ksantosh_45@yahoo.co.in>
 
गीत नदी के मिल गायें
          संजीव 'सलिल'
           *
यमुना बृज की प्राण शक्ति है, दिल्ली का परनाला है.
          राह देखते दिल्ली की क्यों?, दिमागी दीवाला है?
         
          यमुना तट पर पौध लगाकर पेड़ सहस्त्रों खड़े करें.

अगर नहीं तो सब तटवासी, पेड़ मिटाकर स्वयं मरें.

कचरा-शव-पूजन सामग्री, कोई न यमुना में फेके.

कचरा उठा दूर ले जाये, संत भक्त को खुद रोके.

लोक तंत्र में सरकारें ही नहीं समस्या कहीं मूल.

लोक तन्त्र पर डाल रहा क्यों, अपने दुष्कर्मों की धूल.

घर का कचरा कचराघर में, फेंक- न डालें यहाँ-वहाँ.

कहिये फिर कैसे देखेंगे, आप गन्दगी जहाँ-तहाँ?

खुद को बदल, प्रथाओं को भी, मिलकर हम थोडा बदलें.

शक्ति लोक की जाग सके तो, तन्त्र झुकेगा पग छू ले.

नारे, भाषण, धरना तज, पौधारोपण को अपनायें.

हर सलिला को निर्मल कर, हम गीत नदी के मिल गायें.
                                                ***

7 टिप्‍पणियां:




  1. Santoshji bahut hi sundar abhivyakti hai. sadhuvaad!

    Yeh kavita gambheer suni to mera man bhi lalak uthaa
    यमुना जी की पीर सुनी तो, नीर नयन से छलक उठा।।

    Dr Pradeep Sharma Insaan MD,FAMS
    Professor, RP Centre
    AIIMS New Delhi,INDIA

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  2. Sanjeev ji
    Bahut hi saarthak aur aacharan yogya vichaar hain

    Dr Pradeep Sharma Insaan MD,FAMS
    Professor, RP Centre
    AIIMS New Delhi,INDIA

    जवाब देंहटाएं
  3. ramesh chandra soni rcsoni184@gmail.com द्वारा yahoogroups.com

    सुंदर अतिसुंदर। आपकी कविता दिल को छू गयी । साधुवाद । बधाई स्वीकार करे ।

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  4. Mamta Sharma


    आदरणीय सतोष कुमार जी ,सचमुच आपकी कवितासबके नयनों में नीर छलका देने वाली है .सच्चाई है की हमारे देश में जन मानस के मनों में धार्मिक भाव तो प्रधान हैं परन्तु स्वार्थहावी हो जाने से वे सही निर्णय कर पाने में असक्षम हैं वेअगर प्रतिबद्ध हो जावेंगे तो सब सही होगा . कुछ कर्तव्य आम जनता के भी हैं जो हम भूलते जाते हैं व् सारा दोष अन्य के सि र डालते हैं .कविता के लिए बधाई .
    सादर ममता

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  5. achal verma Hindienglishpo.


    प्रिय सन्तोष जी तथा आचार्य सलिल ,
    आप दोनो की रचनाओं में जो दर्द और भर्त्सना है उस पर जब
    ध्यान गया तो मन कराह उठा ।
    हम अपने को धर्मिक कहलाना पसन्द तो करते हैं , पर वास्तव में
    हैं बहुत ही अधार्मिक ।स्वार्थ के कीचड से सराबोर हैं तो सफ़ाई सूझे कैसे ?

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  6. kiran phalke


    Dear sanjiv verma salil
    I cried after reading this poem. What a dirty India it is and nobody is bothered.When i see other countries even like China they are improved so much. Some one had suggested connecting all the rivers of India together but politicians do not have will to do this. I really do not know how India will become super power.
    Thanks for tingling my emotions


    Kiran phalke

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  7. अंगरेजी की त्याग गुलामी करें राष्ट्रभाषा का मान.
    लिखें न अपनी भाषा में?,क्यों करते माँ का अपमान..
    हुए शहीद अनेकों, तन आजाद गुलाम मगर मन है-
    अपनी माटी चन्दन, इसका 'सलिल' कीजिए गौरव गान..
    *
    किरण जी!
    वन्दे मातरम.
    भारत में राजनीति ने अधिकार का पाठ पढ़ाया है, कर्तव्य को भुला दिया. हर नागरिक कचरा फेके और सरकार पर दोष मढ़े तो कोई सरकार कुछ नहीं कर सकती. जो भारतीय विदेशों में पूरी तरह अनुशासित होते हैं वे भी भारत में आकर गैर जिम्मेदार हो जाते हैं.
    भारत में लॉ ऑफ़ टोर्ट (क्षतिपूर्ति अधिनियम) न होना इसका एक कारण है.
    Sanjiv verma 'Salil'
    salil.sanjiv@gmail.com
    http://divyanarmada.blogspot.in

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