मुक्तिका:
वेद की ऋचाएँ.
संजीव 'सलिल'
*
बोल हैं कि वेद की ऋचाएँ.
सारिकाएँ विहँस गुनगुनाएँ..
शुक पंडित श्लोक पढ़ रहे हैं.
मन्त्र कहें मधुर दस दिशाएँ..
बौरा ने बौरा कर देखा-
गौरा से न्यून अप्सराएँ..
महुआ कर रहा द्वार-स्वागत.
किंशुक मिल वेदिका जलाएँ..
कर तल ने करतल हँस थामा
सिहर उठीं देह, मन, शिराएँ..
सप्त वचन लेन-देन पावन.
पग फेरे सप्त मिल लगाएँ.
ध्रुव तारा देख पाँच नयना
मधुर मिलन गीत गुनगुनाएँ.
*****
वेद की ऋचाएँ.
संजीव 'सलिल'
*
बोल हैं कि वेद की ऋचाएँ.
सारिकाएँ विहँस गुनगुनाएँ..
शुक पंडित श्लोक पढ़ रहे हैं.
मन्त्र कहें मधुर दस दिशाएँ..
बौरा ने बौरा कर देखा-
गौरा से न्यून अप्सराएँ..
महुआ कर रहा द्वार-स्वागत.
किंशुक मिल वेदिका जलाएँ..
कर तल ने करतल हँस थामा
सिहर उठीं देह, मन, शिराएँ..
सप्त वचन लेन-देन पावन.
पग फेरे सप्त मिल लगाएँ.
ध्रुव तारा देख पाँच नयना
मधुर मिलन गीत गुनगुनाएँ.
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- amitasharma2000@yahoo.com
जवाब देंहटाएंकी बौरा ने बौरा कर देखा-
गौरा से न्यून अप्सराएँ..
बहुत खूब कहा
अमिता
Shriprakash Shukla yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंekavita
आदरणीय आचार्य जी,
अति उत्तम । वाक्यांश पूर्ति की सफल, प्रभावशाली एवं मनोहारी रचना पढ़कर अत्यंत आनंद की अनुभूति हुयी | बधाई स्वीकार करें ।
सादर
श्रीप्रकाश शुक्ल
achal verma
जवाब देंहटाएंआ. आचार्य जी,
इसे तो साहित्य के इतिहास में
रखने लायक बना दिया आपने । बहुत सुन्दर बन पडा है।
अचल
अचल जी, श्री प्रकाश जी, अमिता जी
जवाब देंहटाएंआपकी गुणग्राहकता को नमन