शनिवार, 12 जनवरी 2013

चित्र पर कविता: सहयोग




चित्र पर कविता: सहयोग  


चित्र पर कविता:
सहयोग

संजीव 'सलिल'
*
मैं-तुम मिलकर हम हुए, हर बाधा कर दूर.
अपनी मंजिल पायेंगे, कर कोशिश भरपूर..
*
एक रुके दूजा बढ़े, थामे कसकर बाँह.
धूप संकटों की हटे, मिले सफलता-छाँह..
*
नन्हें-नन्हें पग रखें, मग पर डग चुपचाप.
मुक्ति युक्ति से पा रहे, बाधा जय कर आप..
*
काश बड़े भी कर सकें, आपस में सहयोग.
मतभेदों का मिट सके, पल में घातक रोग..
*
पाठ पढ़ाओ कम- करो, अधिक श्रेष्ठ व्यवहार.
हर संकट के सामने, तब हो तारणहार..
*
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प्रणव भारती 

चलो सीख लें आज कुछ इन नन्हों से हम,
मिलकर मुश्किल दूर हों,साथ चलें जब हम।
कोई बाधा न रहे ,जब सब हों हम साथ,
आओ देदो तुम मुझे अपना यह  विश्वास।
जीवन की गति है यही ,उजियारे संग रात ,
रात बीतते भोर है,जीवन है सौगात।
पल-पल आते कष्ट हैं,दे जाते आघात,
तुमसा जो साथी मिले ,तो फिर क्या है बात!!
नन्हे -नन्हे पाँव हैं,सोच बहुत है विशाल,
तेरा-मेरा कुछ नहीं ,नहीं कोई जंजाल।
सब सबके दुःख-सुख की पहचानें जो तान,
जीवन बन जाए मधुर ,बन जाए पहचान ।।
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5 टिप्‍पणियां:



  1. संजीव भाई यह चित्र नहीं जीती जागती कविता है ,इसे देखकर इंसानियत में आस्था बढ़ जाती है | दिल में रखने वाला चित्र | दिद्दा

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  2. Indira Pratap

    प्रणव तुमने चित्र को अपनें शब्दों से सजीव कर दिया , सुन्दर अति सुन्दर | दिद्दा

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  3. deepti gupta द्वारा yahoogroups.comरविवार, जनवरी 13, 2013 8:41:00 pm

    deepti gupta द्वारा yahoogroups.com

    बहुत उत्तम प्रणव दी....!

    सस्नेह,
    दीप्ति

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  4. vijay द्वारा yahoogroups.comरविवार, जनवरी 13, 2013 8:42:00 pm

    vijay द्वारा yahoogroups.com

    प्रणव जी, हार्दिक बधाई।

    विजय
    कोई किसी का सह ले, भार,
    कोई किसी को पहूँचा दे पार,
    जीने का सही मर्म यही है!
    और ...
    किसी की मुस्कराहटों पे हो निसार,
    किसी का दर्द मिल सके तो ले उतार,
    .....
    कि मर के भी किसी को याद आएँगे,
    किसी के आँसुओं में मुस्कराएँगे
    कहेगा फूल हर कली से बार-बार
    जीना इसी का नाम है।

    (साभार.. अनाड़ी, फ़िल्म)

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  5. Madhu Gupta द्वारा yahoogroups.com

    आ. संजीव जी व प्रणव
    बड़ी मुश्किल से नेट लगा है पता नही कितनी देर चलेगा आप दोनों की सुन्दर कृतियाँ पढ़ी बच्चों की गतिविधियां निरंतर सीख देतीं हैं , कभी बारीकी से इन्हें देखे तो लगता है , क्या हम भी कभी ऐसे थे ? सहज निष्पक्ष बालपन की अदभुत छवियों पर आपकी रचनाएँ भी उतनी ही सुन्दर है .
    मधु

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