गुरुवार, 24 जनवरी 2013

सामयिक षटपदियाँ: संजीव 'सलिल'

सामयिक षटपदियाँ:
संजीव 'सलिल'
*
मानव के आचार का स्वामी मात्र विचार.
सद्विचार से पाइए, सुख-संतोष अपार..
सुख-संतोष अपार, रहे दुःख दूर आपसे.
जीवन होगा मुक्त, मोहमय महाताप से..
कहे 'सलिल' कुविचार, नाश करते दानव के.
भाग्य जागते निर्बल होकर भी मानव के..
***
हार न सकती मनीषा, पशुपति दें आशीष.
अपराजेय जिजीविषा, सदा साथ हों ईश..
सदा साथ हों ईश, कैंसर बाजी हारे.
आया है युवराज जीत, फिर ध्वज फहरा रे.
दुआ 'सलिल' की, मौत इस तरह मार न सकती.
भारत माता साथ, मनीषा हार न सकती..
*
शीश काटना उचित जब, रहे सामने युद्ध.
शीश झुकाना उचित यदि, मिलें सामने बुद्ध..
शुद्ध ह्रदय से कीजिए, मन में तनिक विचार.
शांति काल में शीश, क्यों काटें- अत्याचार..
दंड न अत्याचार का, दें- हों कुपित शशीश.
बदले में ले लीजिए, दुश्मन के सौ शीश..
*               
***

6 टिप्‍पणियां:

  1. PRajesh Kumar Jha

    कहे 'सलिल' कुविचार, नाश करते दानव के.
    भाग्य जागते निर्बल होकर भी मानव के.. सादर नमन आचार्यजी, मैं इन पंक्तियों का अर्थ नहीं निकाल पा रहा हूं, कृपया मार्गदर्शन करें

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  2. Rajesh Kumar Jha

    शीश काटना उचित जब, रहे सामने युद्ध.
    शीश झुकाना उचित यदि, मिलें सामने बुद्ध.. बहुत ही सुंदर संदेश देती रचना

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  3. ram shiromani pathak

    वाह क्या बात है उत्तम अति उत्तम !!

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  4. Laxman Prasad Ladiwala

    समाचार सोपान से प्रेरित विचारों को प्रस्तुत करने पर हार्दिक बधाई

    तीनो ही षट पदियाँ एक से बढ़कर एक,

    संजीव सलिल लिखे सदविचार सब नेक ।

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  5. राजेश जी, राम शिरोमणि जी, लक्ष्मण जी, प्रदीप जी
    आपका आभार त्वरित प्रतिक्रिया हेतु.

    कहे 'सलिल' कुविचार, नाश करते दानव के.
    भाग्य जागते निर्बल होकर भी मानव के..
    कुविचार के कारण दानवों का नाश होता है तथा मानवों का भाग्य जागता है. निहितार्थ चूंकि दानव कुविचारों से ग्रस्त तथा मानव कुविचारों से मुक्त रहते हैं.

    सत्य ही मैं प्रतिदिन कुछ न कुछ सीखने के र्पयास करता हूँ. आभार आप सबका कि आप इसे न केवल बर्धस्त करते हैं अपितु सराहना कर उत्साह भी बढ़ाते हैं.

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  6. Mukesh Srivastava kavyadhara


    बहुत सराहनीय पंक्तियाँ आचार्य जी .

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