शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

चित्र पर कविता मुक्तिका संजीव 'सलिल'

चित्र पर कविता



गीत
संजीव 'सलिल'
*
क्षितिज-स्लेट पर
लिखा हुआ क्या?...
*
रजनी की कालिमा परखकर,
ऊषा की लालिमा निरख कर,
तारों शशि रवि से बातें कर-
कहदो हासिल तुम्हें हुआ क्या?
क्षितिज-स्लेट पर
लिखा हुआ क्या?...
*
राजहंस, वक, सारस, तोते
क्या कह जाते?, कब चुप होते?
नहीं जोड़ते, विहँस छोड़ते-
लड़ने खोजें कभी खुआ क्या?
क्षितिज-स्लेट पर
लिखा हुआ क्या?...
*
मेघ जल-कलश खाली करता,
भरे किस तरह फ़िक्र न करता.
धरती कब धरती कुछ बोलो-
माँ खाती खुद मालपुआ क्या?
क्षितिज-स्लेट पर
लिखा हुआ क्या?...
*
रमता जोगी, बहता पानी.
पवन विचरता कर मनमानी.
लगन अगन बन बाधाओं का
दहन करे अनछुआ-छुआ क्या?
क्षितिज-स्लेट पर
लिखा हुआ क्या?...
*
चित्र गुप्त ढाई आखर का,
आदि-अंत बिन अजरामर का.
तन पिंजरे से मुक्ति चाहता
रुके 'सलिल' मन-प्राण सुआ क्या?
क्षितिज-स्लेट पर
लिखा हुआ क्या?...
*


10 टिप्‍पणियां:

  1. वीनस केसरी

    राजहंस, वक, सारस, तोते
    क्या कह जाते?, कब चुप होते?
    नहीं जोड़ते, विहँस छोड़ते-
    लड़ने खोजें कभी खुआ क्या?
    क्षितिज-स्लेट पर
    लिखा हुआ क्या?...

    शान $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$.........दार

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  2. लतीफ़ ख़ान
    आदरणीय संजीव वर्मा 'सलिल' जी ,,, मेरे लिए यह कैसा संयोग है कि , आज एक साथ दो गीत पढने मिले दोनों ही एक से बढकर एक ,,यह तो सोने पे सुहागा वाली बात हो गयी ,,, आप के कथ्य को नमन ,, क्या भाव है, क्या शब्द-चित्र है ,,,क्या कहूं आपकी लेखनी ने कैसा जादू जगाया,,,, क्या लिखूं,,, कुछ समझ में नहीं आ रहा है,,,,, कोटिश: बधाइयां ..

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  3. JAWAHAR LAL SINGH

    आदरणीय संजीव जी...

    अद्भुत रचना है यह, बहुत सुन्दर!!

    एक एक शब्द गहन सात्विक चितन, दर्शन, और आत्मावलोकन की साधना से उद्दृत प्रतीत होता है.

    प्रकृति के सारे अवयव (सूर्य, चन्द्र, तारे,पंछी, मेघ, धरा, पवन, अग्नि)सब चिर मुक्त, आनंदित, हर बंध से निःस्पर्शय और अंतिम पद में रहस्योद्घाटन या सीख कि यह तो मन ही है जो अटकता है, प्राण तो चिर मुक्ति की तरफ ही अग्रसर हैं.

    हार्दिक साधुवाद इस अप्रतिम रचना के लिए..

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  4. sanjiv verma 'salil'

    लक्ष्मणप्रसाद जी, प्राची जी, सौरभ जी, विजय जी, गणेश जी, वीनस केसरी जी, लतीफ़ खान जी, जवाहर लाल जी
    आपकी पारखी नज़र को सलाम.

    प्राची जी 'स्लेट' शब्द खटक रहा हो तो 'फलक' कर लें.

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  5. Dr.Prachi Singh

    नहीं नहीं आदरणीय संजीव जी, बिलकुल भी नहीं खटक रहा, स्लेट शब्द तो सुन्दर लग रहा है,

    शायद सही पढ़ पायी कि 'क्षितिज स्लेट पर लिखा हुआ क्या?'............मैंने ही गलत शब्द 'पढ़' प्रयुक्त किया यहाँ, लिखना चाहती थी, "शायद सही अर्थ समझ पायी आपकी इस अनुपम कृति का".

    क्षमा करें .सादर.

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  6. seema agrawal
    प्रकृति और प्रकृति का निःस्वार्थ, मुक्त प्रेमयुत व्यवहार मानव के लिए क्या कुछ सन्देश दे रहा रहा बिना शब्दों के .....बखूबी चित्रित किया है सलिल जी
    चित्र गुप्त ढाई आखर का,
    आदि-अंत बिन अजरामर का.
    तन पिंजरे से मुक्ति चाहता
    रुके 'सलिल' मन-प्राण सुआ क्या?,,,,,बहुत सुन्दर पंक्तियाँ

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  7. Dr.Ajay Khare

    salil ji khafi behtar likha he badahi

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  8. Anwesha Anjushree

    एक सुंदर उपहार , नमन

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  9. PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA

    मेघ जल-कलश खाली करता,
    भरे किस तरह फ़िक्र न करता.
    धरती कब धरती कुछ बोलो-
    माँ खाती खुद मालपुआ क्या?
    क्षितिज-स्लेट पर
    लिखा हुआ क्या?...

    आदरणीय सलिल जी,

    सादर

    बहुत खूब के अलावा क्या कह सकता हूँ.

    बधाई.

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