गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

गीत: क्षितिज-स्लेट पर... संजीव 'सलिल'

गीत 
क्षितिज-स्लेट पर...
संजीव 'सलिल'
*
क्षितिज-स्लेट पर
लिखा हुआ क्या?...
*
रजनी की कालिमा परखकर,
ऊषा की लालिमा निरख कर,
तारों शशि रवि से बातें कर-
कहदो हासिल तुम्हें हुआ क्या?
क्षितिज-स्लेट पर
लिखा हुआ क्या?...
*
राजहंस, वक, सारस, तोते
क्या कह जाते?, कब चुप होते?
नहीं जोड़ते, विहँस छोड़ते-
लड़ने खोजें कभी खुआ क्या?
क्षितिज-स्लेट पर
लिखा हुआ क्या?...
*
मेघ जल-कलश खाली करता,
भरे किस तरह फ़िक्र न करता.
धरती कब धरती कुछ बोलो-
माँ खाती खुद मालपुआ क्या?
क्षितिज-स्लेट पर
लिखा हुआ क्या?...
*
रमता जोगी, बहता पानी.
पवन विचरता कर मनमानी.
लगन अगन बन बाधाओं का
दहन करे अनछुआ-छुआ क्या?
क्षितिज-स्लेट पर
लिखा हुआ क्या?...
*
चित्र गुप्त ढाई आखर का,
आदि-अंत बिन अजरामर का.
तन पिंजरे से मुक्ति चाहता
रुके 'सलिल' मन-प्राण सुआ क्या?
क्षितिज-स्लेट पर
लिखा हुआ क्या?...
*

9 टिप्‍पणियां:

  1. Laxman Prasad Ladiwala

    सुन्दर भावो की अभिव्यक्त करती रचना हार्दिक बधाई स्वीकारे आदरणीय संजीव सलिल जी
    बा कौन किसे समझा है
    खुद को भी क्या समझ पाया
    कौन किसे कितना पढ़ पाया
    क्षितिज-स्लेट पर
    लिखा हुआ क्या?.

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  2. Dr.Prachi Singh

    आदरणीय संजीव जी...

    अद्भुत रचना है यह, बहुत सुन्दर!!

    एक एक शब्द गहन सात्विक चितन,दर्शन, और आत्मावलोकन की साधना से उद्दृत प्रतीत होता है.

    प्रकृति के सारे अवयव (सूर्य, चन्द्र, तारे,पंछी, मेघ, धरा, पवन, अग्नि)सब चिर मुक्त, आनंदित, हर बंध से निःस्पर्शय और अंतिम पद में रहस्योद्घाटन या सीख कि यह तो मन ही है जो अटकता है, प्राण तो चिर मुक्ति की तरफ ही अग्रसर हैं.

    हार्दिक साधुवाद इस अप्रतिम रचना के लिए..

    शायद सही पढ़ पायी कि 'क्षितिज स्लेट पर लिखा हुआ क्या?' सादर.

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  3. Saurabh Pandey

    जब शब्दों को पंक्तियों में चुन-चुन कर पिरोया जाय तो पंक्तियाँ सस्वर हो जाती हैं. लेकिन पंक्तियाँ वह भी कहती प्रतीत होती हैं जो पाठक के मन में परतों तले दुबका पड़ा स्वर नहीं पाया होता है. और रचना पाठक का मनउद्बोधन हो जाती है. आचार्यजी, आपकी प्रस्तुत रचना इसी कक्ष की है. ’धरती’ का यमक क्या ही बेजोड़ हुआ है.

    सादर बधाई.

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  4. vijay nikore

    आ० संजीव जी,

    अति सुन्दर अभिव्यक्ति.. पढ़ कर मन प्रसन्न हुआ ।

    विजय निकोर

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  5. Er. Ganesh Jee "Bagi

    वाह , बहुत ही खुबसूरत गीत, आदरणीय आचार्य जी, आपकी रचनाओं में जो ऊँचाई और नयापन है, वो आनंददायक है , बहुत बहुत बधाई आदरणीय |

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  6. वीनस केसरी

    राजहंस, वक, सारस, तोते
    क्या कह जाते?, कब चुप होते?
    नहीं जोड़ते, विहँस छोड़ते-
    लड़ने खोजें कभी खुआ क्या?
    क्षितिज-स्लेट पर
    लिखा हुआ क्या?...

    शान$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$.........दार

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  7. लतीफ़ ख़ान

    आदरणीय संजीव वर्मा 'सलिल' जी ,,, मेरे लिए यह कैसा संयोग है कि , आज एक साथ दो गीत पढने मिले दोनों ही एक से बढकर एक ,,यह तो सोने पे सुहागा वाली बात हो गयी ,,, आप के कथ्य को नमन ,, क्या भाव है, क्या शब्द-चित्र है ,,,क्या कहूं आपकी लेखनी ने कैसा जादू जगाया,,,, क्या लिखूं,,, कुछ समझ में नहीं आ रहा है,,,,, कोटिश: बधाइयां ..

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  8. JAWAHAR LAL SINGH

    आदरणीय संजीव जी...

    अद्भुत रचना है यह, बहुत सुन्दर!!

    एक एक शब्द गहन सात्विक चितन, दर्शन, और आत्मावलोकन की साधना से उद्दृत प्रतीत होता है.

    प्रकृति के सारे अवयव (सूर्य, चन्द्र, तारे,पंछी, मेघ, धरा, पवन, अग्नि)सब चिर मुक्त, आनंदित, हर बंध से निःस्पर्शय और अंतिम पद में रहस्योद्घाटन या सीख कि यह तो मन ही है जो अटकता है, प्राण तो चिर मुक्ति की तरफ ही अग्रसर हैं.

    हार्दिक साधुवाद इस अप्रतिम रचना के लिए..

    जवाब देंहटाएं
  9. लक्ष्मणप्रसाद जी, प्राची जी, सौरभ जी, विजय जी, गणेश जी, वीनस केसरी जी, लतीफ़ खान जी, जवाहर लाल जी
    आपकी पारखी नज़र को सलाम.

    प्राची जी 'स्लेट' शब्द खटक रहा हो तो 'फलक' कर लें.

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