शनिवार, 22 दिसंबर 2012

गीत: नया वर्ष है... संजीव 'सलिल'


गीत: नया वर्ष है... संजीव 'सलिल'

गीत:
नया वर्ष है...
संजीव 'सलिल'
*
खड़ा मोड़ पर आकर फिर
एक नया वर्ष है...
*
कल से कल का सेतु आज है यह मत भूलो.
पाँव जमीं पर जमा, आसमां को भी छू लो..

मंगल पर जाने के पहले
भू का मंगल -
कर पायें कुछ तभी कहें
पग तले अर्श है.
खड़ा मोड़ पर आकर फिर
एक नया वर्ष है...
*
आँसू न बहा, दिल जलता है, चुप रह, जलने दे.
नयन उनीन्दें हैं तो क्या, सपने पलने दे..

संसद में नूराकुश्ती से
क्या पाओगे?
सार्थक तब जब आम आदमी
कहे हर्ष है.
खड़ा मोड़ पर आकर फिर
एक नया वर्ष है...
*
गगनविहारी माया की ममता पाले है.
अफसर, नेता, सेठ कर रहे घोटाले हैं.

दोष बताएं औरों के
निज दोष छिपाकर-
शीर्षासन कर न्याय कहे
सिर धरा फर्श है.
खड़ा मोड़ पर आकर फिर
एक नया वर्ष है...
*
धनी और निर्धन दोनों अधनंगे फिरते.
मध्यमवर्गी वर्जनाएं रच ढोते-फिरते..

मनमानी व्याख्या सत्यों
की करे पुरोहित-
फतवे जारी हुए न लेकिन
कुछ विमर्श है.
खड़ा मोड़ पर आकर फिर
एक नया वर्ष है...
*
चले अहर्निश ऊग-डूब कब सोचे सूरज?
कर कर कोशिश फल की चिंता काश सकें तज..

कंकर से शंकर गढ़ना हो
लक्ष्य हमारा-
विषपायी हो 'सलिल'
कहें: त्यागा अमर्श है.
खड़ा मोड़ पर आकर फिर
एक नया वर्ष है...
*

7 टिप्‍पणियां:

  1. rajesh kumari

    वाह आदरणीय सलिल जी
    आपने तो नूतन वर्ष का आगाज़ बहुत सुन्दर गीत से किया सम्पूर्ण वर्ष का लेख जोखा शब्द दर शब्द बढ़ता गया व्यंग्य ,सन्देश क्या खोया क्या पाया सभी कुछ तो कह रहा है आपका गीत ,जब आम आदमी कहे हर्ष है तभी सार्थक वर्ष है ,दरवाजे पर खड़ा नूतन वर्ष है ।बहुत बहुत बधाई आदरणीय

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  2. Saurabh Pandey

    नव वर्ष के मंगलमय होने की आशाओं के साथ विचारपरक तथ्यों की इतना शानदार प्रस्तुति ! वाह वाह !!

    चले अहर्निश ऊग-डूब कब सोचे सूरज?
    कर कर कोशिश फल की चिंता काश सकें तज..

    बहुत खूब, आचार्यजी.

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  3. अरुन शर्मा "अनन्त"शनिवार, दिसंबर 22, 2012 4:02:00 pm

    अरुन शर्मा "अनन्त"

    आदरणीय सर नव वर्ष का इतना सुन्दर गीत पढने का मुझे अवसर मिला आपको अनेक-2 धन्यवाद

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  4. seema agrawal
    नव वर्ष से पूर्व ही नव वर्ष की पद चाप सुनवाने के लिए धन्यवाद आचार्य जी
    कल से कल का सेतु आज है यह मत भूलो...वाह क्या लेखन है

    शीर्षासन कर न्याय कहे
    सिर धरा फर्श है.....वाह

    चले अहर्निश ऊग-डूब कब सोचे सूरज?
    कर कर कोशिश फल की चिंता काश सकें तज...इन पंक्तियों ने गीत में चार चाँद लगा दिए हैं

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  5. सौरभ जी, अरुण जी, सीमा जी, रचना ने आपके मन को छुआ तो मेरा सृजन कर्म सफल हो गया. धन्यवाद.

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  6. deepti gupta

    आदरणीय संजीव जी,

    इस प्यारी सी कविता के लिए भरपूर सराहना स्वीकार कीजिए !

    सादर,
    दीप्ति

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  7. vijay
    आ० संजीव जी,

    सुन्दर कविता के लिए बधाई।

    विजय

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