शिशु गीत सलिला : 7
संजीव 'सलिल'
*
61. फल

मेहनत का मिलता है फल,
कोशिश होती सदा सफल।
पौधा कली पुष्प मिलते-
तब ही मिलता उनको फल।।
काम आज का आज करो,
किसने देखा बोलो कल?
'सलिल' निरंतर बहता है
झरना नदिया बन कलकल।।
*
62. नदी
नदी न रुकती, बहती है,
हर मौसम चुप सहती है।
पानी मत गंदा करना-
सुनो तुम्हीं से कहती है।।
बारिश में उफनाती है,
माटी गिरती, ढहती है।
वृक्ष लगाओ किनारे पर-
स्वच्छ-शांत तब रहती है।।
*
63. तालाब

सभी का मन लुभाता है,
भरा तालाब में पानी।
कमल के फूल मन मोहें-
न पाटो, है ये नादानी।।
नहीं गहराई में जाना,
किनारे ही नहाना है।
बने हों घाट पर मंदिर-
वहीं सर को झुकाना है।।
*
64. झरना

धीरे-धीरे आता है,
फिर यह चाल बढ़ाता है।
कूद शिखर से गड्ढे में-
हँसता है, मस्ताता है।
लहरों-भँवरों को संग ले
पत्थर से टकराता है।
बैठ किनारे मौन सुनो-
गीत प्रीत के गाता है।।
*
65. सागर
सारी दुनिया की गागर,
यह विशाल नीला सागर।
किसने रंग दिया नीला?
यह लहरों का जलसा घर?
मछली, मगरमच्छ रहते,
नहीं किसी से कुछ कहते।
तूफानों को लेते झेल-
हर कठिनाई मिल सहते।
*
66. मछली
मछली पानी में भाती,
हाथ लगाओ डर जाती।
पानी को करती है साफ़-
बाहर निकले मर जाती।
*
67. बंदर
बंदर खेल दिखाता है,
सबको खूब रिझाता है।
दिख जाए फल अगर इसे-
खाने को ललचाता है।।
*
68. बंदरिया
पहने लाल घघरिया है,
नाची खूब बंदरिया है।
बच्चे बजा रहे ताली-
बंदर बना सँवरिया है।।
*
69. मुर्गा
सूरज जब उग आता है,
मुर्गा झट जग जाता है।
प्यारे बच्चों जग जाओ-
जमकर बांग लगता है।।
*
70. तितली
बगिया में जब खिली कली,
झूम-नाच खेले तितली।
भँवरे चाचा थाम रहे-
सम्हली, फिसली फिर सम्हली।।
*

संजीव 'सलिल'
*
61. फल
मेहनत का मिलता है फल,
कोशिश होती सदा सफल।
पौधा कली पुष्प मिलते-
तब ही मिलता उनको फल।।
काम आज का आज करो,
किसने देखा बोलो कल?
'सलिल' निरंतर बहता है
झरना नदिया बन कलकल।।
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62. नदी
नदी न रुकती, बहती है,
हर मौसम चुप सहती है।
पानी मत गंदा करना-
सुनो तुम्हीं से कहती है।।
बारिश में उफनाती है,
माटी गिरती, ढहती है।
वृक्ष लगाओ किनारे पर-
स्वच्छ-शांत तब रहती है।।
*
63. तालाब
सभी का मन लुभाता है,
भरा तालाब में पानी।
कमल के फूल मन मोहें-
न पाटो, है ये नादानी।।
नहीं गहराई में जाना,
किनारे ही नहाना है।
बने हों घाट पर मंदिर-
वहीं सर को झुकाना है।।
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64. झरना
धीरे-धीरे आता है,
फिर यह चाल बढ़ाता है।
कूद शिखर से गड्ढे में-
हँसता है, मस्ताता है।
लहरों-भँवरों को संग ले
पत्थर से टकराता है।
बैठ किनारे मौन सुनो-
गीत प्रीत के गाता है।।
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65. सागर
सारी दुनिया की गागर,
यह विशाल नीला सागर।
किसने रंग दिया नीला?
यह लहरों का जलसा घर?
मछली, मगरमच्छ रहते,
नहीं किसी से कुछ कहते।
तूफानों को लेते झेल-
हर कठिनाई मिल सहते।
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66. मछली
मछली पानी में भाती,
हाथ लगाओ डर जाती।
पानी को करती है साफ़-
बाहर निकले मर जाती।
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67. बंदर
बंदर खेल दिखाता है,
सबको खूब रिझाता है।
दिख जाए फल अगर इसे-
खाने को ललचाता है।।
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68. बंदरिया
पहने लाल घघरिया है,
नाची खूब बंदरिया है।
बच्चे बजा रहे ताली-
बंदर बना सँवरिया है।।
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69. मुर्गा
सूरज जब उग आता है,
मुर्गा झट जग जाता है।
प्यारे बच्चों जग जाओ-
जमकर बांग लगता है।।
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70. तितली
बगिया में जब खिली कली,
झूम-नाच खेले तितली।
भँवरे चाचा थाम रहे-
सम्हली, फिसली फिर सम्हली।।
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deepti gupta द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंक्या बात, क्या बात, क्या बात !
सादर,
दीप्ति
dks poet
जवाब देंहटाएंआदरणीय सलिल जी,
बाल साहित्य पर आपका काम अतुलनीय होता जा रहा है। बधाई स्वीकारें और यात्रा जारी रखें।
सादर
धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’
Ram Gautam
जवाब देंहटाएंआ. आचार्य सलिल जी,
बहुत ही सुंदर लगी, बाल- गीत की कविताएँ । नदी, सागर, झरने, तालाब,
मछली, बन्दर- बंदरिया, तितली आदि पर अच्छी सोच है या कहूं कि आपके
जैसा कोई वखान-ए- सानी नहीं है । आप की कलम को नमन और बधाई ।
सादर- गौतम
Dr.Prachi Singh
जवाब देंहटाएंआदरणीय संजीव जी,
आस पास के वातावरण के अवयवों पर जीव जंतुओं पर सुन्दर पंक्तिया लिखीं है. हार्दिक बधाई .
Saurabh Pandey
जवाब देंहटाएंश्रेणीबद्ध पारिभाषिक प्रस्तुतियों के लिए सादर अभिनन्दन, आचार्यवर. ऐसी छोटी चौपदियाँ गेय होने के कारण अक्सर बच्चों की ज़ुबां पर चढ जाती हैं. अब यह उन माता-पिताओं और अभिभावकों के ऊपर निर्भर है कि क्या वे इन रोचक रचनाओं को अपने बच्चों के लिए उपलब्ध कराते भी हैं !
विशेष, यह अवश्य कहूँगा कि कुछ चौपदियों के आयाम थोड़े और व्यावहारिक या स्पष्ट होते. फिर भी एक विशिष्ट कार्य हेतु बधाई.