सोमवार, 24 सितंबर 2012

कविता: प्रेम का अंकुर --संतोष भाऊवाला

कविता:
 
 
प्रेम का अंकुर
 
 
संतोष भाऊवाला 
 *
जिंदगी गर जाफरानी लगे
पूस की धूप सी सुहानी लगे  
 लगे अमन चैन लूटा है
तो समझो ह्रदय में
प्रेम का अंकुर फूटा है
भावों का सलिल बहने लगे
शब्दों का अभाव रहने लगे
सब्र का बाँध टूटा है
तो समझो ह्रदय में
प्रेम का अंकुर फूटा है
कुछ करने का न मन करे
तन्हाई में खुद से बाते करें
जग से नाता छूटा है
तो समझो ह्रदय में
प्रेम का अंकुर फूटा है

बढ़ने घटने लगे जब साँसों का स्पंदन
लगे प्यारा बस प्यार का ही बन्धन
रोम रोम में घुलता अहसास अनूठा है
तो समझो ह्रदय में
प्रेम का अंकुर फूटा है
मन जब ईश्वर में रम जाये
उसके प्रेम में बंध जाये
माया मोह झूठा है
तो समझो ह्रदय में
प्रेम का अंकुर फूटा है
 

11 टिप्‍पणियां:



  1. प्रिय संतोष ,

    बहुत ऊँची कविता लिखी है ! हर पंक्ति शानदार और जानदार है ! मन चाह रहा है कि आकाश की तरह अनंत और पवन की तरह न थमने वाली सराहना करती जाऊँ, करती जाऊँ, करती जाऊँ,.....!

    सस्नेह,
    दीप्ति

    जवाब देंहटाएं


  2. प्रिय संतोष ,

    बहुत ऊँची कविता लिखी है ! हर पंक्ति शानदार और जानदार है ! मन चाह रहा है कि आकाश की तरह अनंत और पवन की तरह न थमने वाली सराहना करती जाऊँ, करती जाऊँ, करती जाऊँ,.....!

    सस्नेह,
    दीप्ति

    जवाब देंहटाएं


  3. prem ka ankur futa hai kavita se n janen kyon bahut si purani prem kathaen yad aa gai ,saty evam sundar bhav . sadhuvad santosh ji ,sundar rachna .

    जवाब देंहटाएं
  4. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.comसोमवार, सितंबर 24, 2012 10:54:00 am

    sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com

    प्रिय बहन संतोष,
    " प्रेम " शब्द पर तुम्हारी कविता बहुत सुन्दर और प्रभावी
    बन आई है | बहुत बहुत बधाई !
    कमल भाई

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह... वाह...
    क्या बात... क्या बात... क्याबात...
    आपको अर्पित चंद पंक्तियाँ
    जब मन में संतोष हो,
    सात्विकता का जयघोष हो.
    ऐसा लगे कि लोभ-लालसा को
    संयम ने कूटा है
    तो समझो कि
    प्रेम का अंकुर फूटा है.

    जवाब देंहटाएं

  6. जब जेब में दमड़ी न हो
    पर लगे त्रिलोक का कोष है.
    अरमानों का वत्स, प्रयासों की गौ
    और सफलता का खूंटा है
    तो समझो कि
    प्रेम का अंकुर फूटा है.

    जवाब देंहटाएं
  7. - kiran5690472@yahoo.co.in


    Wah Salil Ji,
    sab ki naamo pe aap itni sundar kavita likh daalte hain ki apne naam se prem gehra ho jaata hai :)

    Sent on my BlackBerry® from Vodafone

    जवाब देंहटाएं
  8. - shishirsarabhai@yahoo.com आदरणीय संतोष जी,

    आपने कमाल की कविता लिखी है.
    जिंदगी गर जाफरानी लगे
    पूस की धूप सी सुहानी लगे
    लगे अमन चैन लूटा है
    तो समझो ह्रदय में
    प्रेम का अंकुर फूटा है



    बढ़ने घटने लगे जब साँसों का स्पंदन
    लगे प्यारा बस प्यार का ही बन्धन
    रोम रोम में घुलता अहसास अनूठा है
    तो समझो ह्रदय में
    प्रेम का अंकुर फूटा है


    बहुत खूब ...

    साधुवाद ,
    शिशिर

    जवाब देंहटाएं
  9. - kanuvankoti@yahoo.com

    भावों का सलिल बहने लगे
    शब्दों का अभाव रहने लगे
    सब्र का बाँध टूटा है
    तो समझो ह्रदय में
    प्रेम का अंकुर फूटा है
    कुछ करने का न मन करे
    तन्हाई में खुद से बाते करें
    जग से नाता छूटा है
    तो समझो ह्रदय में
    प्रेम का अंकुर फूटा है

    अनुपम रचना संतोष जी.....

    ढेर सराहना स्वीकारे
    सादर,
    कनु

    जवाब देंहटाएं
  10. Santosh Bhauwala ✆yahoogroups.com

    आदरणीय इंदिरा जी, दीप्ती जी, भैया कमल जी, कनु जी, शिशिर जी, आचार्य जी, किरण जी आप सभी ने रचना पसंद की बहुत बहुत आभारी हूँ |

    आदरणीय आचार्य जी, आपकी पंक्तियाँ हमने संजो कर रख ली है आप कैसे इतनी जल्दी सभी के नाम पर भी कविता रच लेते हैं?
    नमन!!
    संतोष भाऊवाला

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  11. मैं तो कुछ लिखता नहीं लिखवाते कलमेश.
    अंकुर फूटे प्रेम का सदय रहें शब्देश..
    अपनेपन के भाव से नि:सृत होता काव्य-
    बिंदु बन सके सिंधु यदि हों दीप्तित परमेश..

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