दोहा-मुक्तिका:
तरु को तनहा कर गये, झर-झर झरते पात
संजीव 'सलिल'
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तरु को तनहा कर गये, झर-झर झरते पात.
यह जीवन की जीत है, क्यों कहते- हैं मात??
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सूखी शाखों पर नयी, कोपल फूटे प्रात.
झूम बताती: मृत्यु वर, जीवन देती रात..
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कोमल कलिका कुलिश सी, होती सह आघात.
गौरी ही काली हुई, सच मत भूलो तात..
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माँ बहिना भाभी सखी, पत्नि सदृश सौगात.
बिन बेटी कैसे मिले?, मत मारो नवजात..
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शूल-फूल, सुख-दुःख 'सलिल', धूप-छाँव बारात.
श्वास-आस दूल्हा-दुल्हन, श्रम-कोशिश नग्मात..
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सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in.divyanarmada
Indira Pratap ✆ yahoogroups.com kavyadhara
जवाब देंहटाएंtaru ko tanha kar gae jhar jhar jharte paat .----------------- vah kya jiivan ka stya or jiivan ke lie sandesh hai , ghumte rahenge dimag me ye shabd . atishy sunder .
deepti gupta ✆ yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंkavyadhara
आदरणीय संजीव जी,
सूखी शाखों पर नयी, कोपल फूटे प्रात.
झूम बताती: मृत्यु वर, जीवन देती रात............अपने गहन दर्शन संजोए, प्रकृति सबसे बड़ी शिक्षिका हैं !
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कोमल कलिका कुलिश सी, होती सह आघात.
गौरी ही काली हुई, सच मत भूलो तात..
सत्य का उजाला बिखेरते आपके दोहे सूरज के समान सबका मार्ग दर्शन करते रहें !
ढेर साधुवाद !
सादर,
दीप्ति
- prans69@gmail.com
जवाब देंहटाएंसलिल जी,
आपके दोहे लुभा गये हैं.
प्राण शर्मा