गुरुवार, 20 सितंबर 2012

दोहा-मुक्तिका: तरु को तनहा... संजीव 'सलिल'

दोहा-मुक्तिका:

तरु को तनहा कर गये, झर-झर झरते पात



संजीव 'सलिल'
*
तरु को तनहा कर गये, झर-झर झरते पात.
यह जीवन की जीत है, क्यों कहते- हैं मात??
*
सूखी शाखों पर नयी, कोपल फूटे प्रात.
झूम बताती: मृत्यु वर, जीवन देती रात..
*
कोमल कलिका कुलिश सी, होती सह आघात.
गौरी ही काली हुई, सच मत भूलो तात..
*
माँ बहिना भाभी सखी, पत्नि सदृश सौगात.
बिन बेटी कैसे मिले?, मत मारो नवजात..
*
शूल-फूल, सुख-दुःख 'सलिल', धूप-छाँव बारात.
श्वास-आस दूल्हा-दुल्हन, श्रम-कोशिश नग्मात..
*
सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in.divyanarmada

3 टिप्‍पणियां:

  1. Indira Pratap ✆ yahoogroups.com kavyadhara


    taru ko tanha kar gae jhar jhar jharte paat .----------------- vah kya jiivan ka stya or jiivan ke lie sandesh hai , ghumte rahenge dimag me ye shabd . atishy sunder .

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  2. deepti gupta ✆ yahoogroups.com

    kavyadhara


    आदरणीय संजीव जी,
    सूखी शाखों पर नयी, कोपल फूटे प्रात.
    झूम बताती: मृत्यु वर, जीवन देती रात............अपने गहन दर्शन संजोए, प्रकृति सबसे बड़ी शिक्षिका हैं !

    *
    कोमल कलिका कुलिश सी, होती सह आघात.
    गौरी ही काली हुई, सच मत भूलो तात..

    सत्य का उजाला बिखेरते आपके दोहे सूरज के समान सबका मार्ग दर्शन करते रहें !

    ढेर साधुवाद !
    सादर,
    दीप्ति

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  3. - prans69@gmail.com

    सलिल जी,
    आपके दोहे लुभा गये हैं.
    प्राण शर्मा

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