कविता:

मैं
संजीव 'सलिल'
*
सच कहूँ?
देखकर नहीं देखा.
उसको जाना
मगर नहीं जाना.
आपा-धापी में
सदा व्यस्त रहा,
साथ रहकर भी
नहीं पहचाना.
जब भी तनहा हुआ,
उदास हुआ.
तब अचानक
वो मेरे पास हुआ.
जब कदम
मैंने बढ़ाये आगे.
साया उसका भी
साथ ही भागे.
वो नहीं अक्स है
न परछाईं.
मुझसे किंचित नहीं
जुदा भाई.
साथ सुख-दु:ख
सदा ही सहता है.
गिला-शिकवा
न कुछ भी करता है.
मेरे नगमे
वही तो गाता है.
दोहे, गजलें भी
गुनगुनाता है.
चोट मुझको लगे
तो वह रोये.
पैर मैले हुए
तो हँस धोये.
मेरा ईमान है,
ज़मीर है वह.
कभी फकीर है,
अमीर है वह.
सच को उससे
छिपा नहीं पाता.
साथ चलता
रुका नहीं जाता.
मैं थकूँ तो
है हौसला देता.
मुझसे कुछ भी
कभी नहीं लेता.
डूबता हूँ तो
बचाये वह ही.
टूटता हूँ तो
सम्हाले वह ही.
कभी हो पाक
वह भगवान लगे.
कभी हैरां करे,
शैतान लगे.
कभी नटखट,
कभी उदास लगे.
मुझे अक्सर तो
वह इंसान लगे.
तुमने जाना उसे
या ना जाना?
मेरा अपना है वह,
न बेगाना.
नहीं मुमकिन
कहीं वह और कहीं मैं.
वह मेंरी रूह है,
वही हूँ मैं.
********
Acharya Sanjiv verma 'Salil'http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
मैं
संजीव 'सलिल'
*
सच कहूँ?
देखकर नहीं देखा.
उसको जाना
मगर नहीं जाना.
आपा-धापी में
सदा व्यस्त रहा,
साथ रहकर भी
नहीं पहचाना.
जब भी तनहा हुआ,
उदास हुआ.
तब अचानक
वो मेरे पास हुआ.
जब कदम
मैंने बढ़ाये आगे.
साया उसका भी
साथ ही भागे.
वो नहीं अक्स है
न परछाईं.
मुझसे किंचित नहीं
जुदा भाई.
साथ सुख-दु:ख
सदा ही सहता है.
गिला-शिकवा
न कुछ भी करता है.
मेरे नगमे
वही तो गाता है.
दोहे, गजलें भी
गुनगुनाता है.
चोट मुझको लगे
तो वह रोये.
पैर मैले हुए
तो हँस धोये.
मेरा ईमान है,
ज़मीर है वह.
कभी फकीर है,
अमीर है वह.
सच को उससे
छिपा नहीं पाता.
साथ चलता
रुका नहीं जाता.
मैं थकूँ तो
है हौसला देता.
मुझसे कुछ भी
कभी नहीं लेता.
डूबता हूँ तो
बचाये वह ही.
टूटता हूँ तो
सम्हाले वह ही.
कभी हो पाक
वह भगवान लगे.
कभी हैरां करे,
शैतान लगे.
कभी नटखट,
कभी उदास लगे.
मुझे अक्सर तो
वह इंसान लगे.
तुमने जाना उसे
या ना जाना?
मेरा अपना है वह,
न बेगाना.
नहीं मुमकिन
कहीं वह और कहीं मैं.
वह मेंरी रूह है,
वही हूँ मैं.
********
Acharya Sanjiv verma 'Salil'http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
Mahipal Singh Tomar ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर, साक्षात्कार, बधाई 'सलिल' जी,
vijay ✆ द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंkavyadhara
आ० संजीव जी,
सुन्दर रचना के लिए साधुवाद !
तुमने जाना उसे
या ना जाना?
मेरा अपना है वह,
न बेगाना.
नहीं मुमकिन
कहीं वह और कहीं मैं.
वह नेरी रूह है,
वही हूँ मैं.
बधाई,
विजय
sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंkavyadhara
विलक्षण प्यार और भावनाओं से ओतप्रोत रचना | साधुवाद !
आपकी लेखनी काव्यधारा का प्राण है |
सादर
कमल
deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंkavyadhara
अप्रतिम रचना संजीव जी,
ढेर बधाई और सराहना
सादर,
दीप्ति
Pranava Bharti ✆ pranavabharti@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
जवाब देंहटाएंआ.संजीव जी
क्या कहें कुछ कहा नहीं जाता
बिन कहे भ़ी रहा नहीं जाता
'सरस्वती' की असीम माया है
'मैं' के आगे ही सर झुकाया है
ये वो 'मैं' जुदा नही 'उससे'
ये वो 'मैं'है खफा नहीं तुझसे
इस'मैं' में ही तो उसका वास है
इसीलिए दुनिया सारी ख़ास है
ये 'मैं'ही पालता है हम सबको
फिर कभी सालता है हम सबको
जिसने इसका समझ लिया चेहरा
वह कभी न कर सके तेरा-मेरा
अनेकानेक शुभकामनाओं सहित
आपके उस 'मैं' को सादर नमन
प्रणव भारती
- sosimadhu@gmail.com
जवाब देंहटाएंआ संजीव जी
'मैं पर आपकी कविता पढ़ी,विषम विषय पर जिस सुंदरता से आपने हमको बताया है उसके लिए धन्यवाद
मधु
- binu.bhatnagar@gmail.com
जवाब देंहटाएंसलिल जी की कविता अच्छी लगी. लगभग इसी तरह के भाव मेरी कविता ज़िन्दगी के भी हैं.
- kanuvankoti@yahoo.com
जवाब देंहटाएंआपकी रचना क्षमता को नमन सलिल जी,
सादर,
कनु
ज़िन्दगी
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी तुझे क्या नाम दूँ।
जानी पहचानी है तू
फिर भी अन्जान है तू।
आज शिशु है उगता सूरज है।
कल यौवन की धूप है।
जब शाम ढलने लगी,
गोधूलि तू।
शाम नीली है ,सलोनी है।
रात के प्रहर मे भी अलबेली है।
एक अनबूझी पहेली है तू,
खुली किताब भी है तू।
तू वीरान सपाट है कभी,
कभी चुलबुली सहेली है।
कभी काँटे हैं पथरीली है तू,
कभी चम्पा ,चमेली है तू।
तू शांत सागर है,
गंभीर भी है,
आँधी तूफ़ान भी है
बड़ी मनचली है तू।
मेरा तुझसे नाता क्या है,
कब साथ छोड़ दे,
किसकी हुई है तू,
फिर भी जब तक साथ है,
मेरी है मेरी अपनी है
मेरी पहचान है तू,
मेरी सहेली है तू।
- shishirsarabhai@yahoo.com
जवाब देंहटाएंआदरणीय संजीव जी,
सच कहूँ?
देखकर नहीं देखा.
उसको जाना
मगर नहीं जाना.
आपा-धापी में
सदा व्यस्त रहा,
साथ रहकर भी
नहीं पहचाना.
क्या बात हाई, बेहतरीन ख्याल हैं....बहुत प्यारी रचना ,
ढेर साधुवाद !
सादर,
शिशिर