कालजयी गीतकार राकेश जी को समर्पित:
एक गीत:
गीत के नीलाभ नभ पर...
संजीव 'सलिल'
*
गीत के नीलाभ नभ पर, चमकते राकेश की छवि
'सलिल' में बिम्बित तनिक हो, रचे सिकता स्वर्ण जैसी...
*
भावनाओं की लहरियाँ, कामनाओं की शिला पर,
सिर पटककर तोड़तीं दम, पुनर्जन्मित हो विहँसतीं.
नित नयी संभावनाओं के झंकोरे, ओषजन बन-
श्वास को नव आस देते, कोशिशें फिर-फिर किलकतीं..
स्वेद धाराएँ प्रवाहित हो अबाधित, आशु कवि सी
प्रीत के पीताभ पट पर, खंचित अर्पण-पर्ण जैसी...
गीत के नीलाभ नभ पर, चमकते राकेश की छवि
'सलिल' में बिम्बित तनिक हो, रचे सिकता स्वर्ण जैसी...
*
क्षर करे आराधना, अक्षर निहारे मौन रहकर,
सत्य-शिव-सुंदर सुपासित, हो सुवासित आत्म गहकर.
लौह तन को वासना का, जंग कर कमजोर देता-
त्याग-संयम से बने स्पात, तप-आघात सहकर..
अग्नि-कण अगणित बनाते अमावस भी पूर्णिमा सी
नीत के अरुणाभ घट पर, निखरते ऋतु-वर्ण जैसी..
गीत के नीलाभ नभ पर, चमकते राकेश की छवि
'सलिल' में बिम्बित तनिक हो, रचे सिकता स्वर्ण जैसी...
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
एक गीत:
गीत के नीलाभ नभ पर...
संजीव 'सलिल'
*
गीत के नीलाभ नभ पर, चमकते राकेश की छवि
'सलिल' में बिम्बित तनिक हो, रचे सिकता स्वर्ण जैसी...
*
भावनाओं की लहरियाँ, कामनाओं की शिला पर,
सिर पटककर तोड़तीं दम, पुनर्जन्मित हो विहँसतीं.
नित नयी संभावनाओं के झंकोरे, ओषजन बन-
श्वास को नव आस देते, कोशिशें फिर-फिर किलकतीं..
स्वेद धाराएँ प्रवाहित हो अबाधित, आशु कवि सी
प्रीत के पीताभ पट पर, खंचित अर्पण-पर्ण जैसी...
गीत के नीलाभ नभ पर, चमकते राकेश की छवि
'सलिल' में बिम्बित तनिक हो, रचे सिकता स्वर्ण जैसी...
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क्षर करे आराधना, अक्षर निहारे मौन रहकर,
सत्य-शिव-सुंदर सुपासित, हो सुवासित आत्म गहकर.
लौह तन को वासना का, जंग कर कमजोर देता-
त्याग-संयम से बने स्पात, तप-आघात सहकर..
अग्नि-कण अगणित बनाते अमावस भी पूर्णिमा सी
नीत के अरुणाभ घट पर, निखरते ऋतु-वर्ण जैसी..
गीत के नीलाभ नभ पर, चमकते राकेश की छवि
'सलिल' में बिम्बित तनिक हो, रचे सिकता स्वर्ण जैसी...
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.
http://hindihindi.in
deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंkavyadhara
=D> applause
अनुपम, अद्भुत .........!!
सादर,
दीप्ति
sn Sharma ✆ ahutee@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
जवाब देंहटाएंधन्य है आपकी लेखनी आचार्य जी,
चित्र की आत्मा में पैठ कर अक्षरों का इतना सुन्दर गणित प्रस्तुत करना केवल सरस्वती -पुत्र के बस का ही काम है| आपकी कला को बारम्बार नमन!
अमर पंक्तियाँ हैं-
गीत के नीलाभ नभ पर,
चमकते राकेश की छवि
'सलिल' में बिम्बित तनिक हो,
रचे सिकता स्वर्ण जैसी...
*
स्वेद धाराएँ प्रवाहित हो अबाधित,
आशु कवि सी
प्रीत के पीताभ पट पर,
खंचित अर्पण-पर्ण जैसी...
वाह.....वाह ...
सुमित्रा नंदन पन्त साकार हो उठे!
मन मुग्ध है इस अनुपम गीत पर| बार बार पढ़ कर और पढ़ने की प्यास बढ़ती है| सँजो कर रखने वाली निधि है |
सादर,
कमल
Pranava Bharti ✆ द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
जवाब देंहटाएंआ.
क्या और कैसे दूँ प्रतिक्रिया
खो गई हूँ शब्द में ..........
आकार गढ़ते है,छवि बनती है
छवि में मन्त्र-मुग्ध से हम खो जाते हैं
छायावादी कवि फिर उभर आया साहित्य -नभ में
देता हुआ संदेश ..........
स्वेद धाराएं प्रवाहित हों अबाधित
आशु कवि सी.............
क्षर करे आराधना, अक्षर निहारे
मौन रहकर .....क्या बात है!
आपकी लेखनी हम सबके लिए सौगात है ................||
आपको व आपकी लेखनी को नमन
दादा ने बिलकुल सही कहा है
सरस्वती पुत्र ही इतना बड़ा उपक्रम कर सकते हैं
आपको बहुत बहुत आदर सहित
सुंदर रचना के लिए
धन्यवाद व अनेकानेक शुभकामनाएँ
सादर
प्रणव भारती