मंगलवार, 28 अगस्त 2012

लघु कथा: ऐसा क्यों? -संतोष भाऊवाला

लघु कथा:
ऐसा क्यों?
 

 
संतोष भाऊवाला 
*
कुमारी का अपने पति से झगडा हो गया था I

उसका घर छोड़ कर वह अपनी माँ के घर रहने लग गई थी I  सुबह शाम मंदिर जाती और दिन में दूसरों के घर का काम कर अपना पेट पाल रही थी I

माँ बाप ने वापस जाने के लिये बहुत समझाया पर नहीं मानी I अब तो अजीबो गरीब हरकते करने लगी थी I कहती थी... उसमे माता का वास है जब जोर जोर से सिर हिलाती तो सभी उसके पैर छूने लगते ...जब वो ये बाते मुझे बताती तो मेरा मन नहीं मानता था .... कैसे किसी  लड़की में माता का वास हो सकता है , वह  माता स्वरुप हो सकती  है?

मैंने उससे पूछा: 'तुम दूसरी शादी क्यों नहीं कर लेती?'

कहती थी: 'ऐसी बात करना भी मेरे लिये पाप है अब मै देवी हूँ  I' मै चुप हो जाती क्या कहती?...

कल कोई बता रहा था कि कुमारी किसी के साथ भाग गई, वह भी दो बच्चों के पिता के साथ .....
 *


3 टिप्‍पणियां:

  1. सामाजिक विद्रूपताओं और विसंगतियों को उद्घाटित करती सशक्त लघुकथा.

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  2. sn Sharma ✆ yahoogroups.com

    vicharvimarsh


    वाह संतोष जी ,
    यह कमाल की लघु कथा है
    इसमें पैना सा व्यंग छुपा है
    कलम तुम्हारी अब निखरती जा रही है
    समूह की हर विधा को बहुत भा रही है
    सस्नेह साधुवाद !
    कमल भाई

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  3. deepti gupta ✆ yahoogroups.com

    vicharvimarsh


    आदरणीया संतोष जी,
    इंसान भी अजीबो-गरीब शय है!एकाएक किसी में देवी आने की बात करना, उस इंसान के मन की दबी हुई ग्रंथियों का द्योतक है! व्
    यक्ति से शक्ति बनने में यानी देवत्व विकसित होने में, सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध बनने में एक जन्म लग जाता है! जिसमें सच में लम्बी तपस्या के उपरांत, कुण्डलिनी आदि जाग्रत होने पर देवत्व विकसित हो जाता है, वह इस तरह भागा नहीं करता! आपकी कहानी अंध धारणाओं पे बढ़िया तंज है!

    ढेर सराहना के साथ,
    दीप्ति

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