सामयिक व्यंग्य कविता:
दवा और दाम

संजीव 'सलिल'
*
देव! कभी बीमार न करना...

यह दुनिया है विकट पहेली.
बाधाओं की साँस सहेली.
रहती है गंभीर अधिकतर-
कभी-कभी करती अठखेली.
मुश्किल बहुत ज़िंदगी लेकिन-
सहज हुआ जीते जी मरना...

मर्ज़ दिए तो दवा बनाई.
माना भेजे डॉक्टर भाई.
यह भी तो मानो हे मौला!
रूपया आज हो गया पाई.
थैले में रुपये ले जाएँ-
दवा पड़े जेबों में भरना...

तगड़ी फीस कहाँ से लाऊँ?
कैसे मँहगे टेस्ट कराऊँ??
ओपरेशन फी जान निकले-
ब्रांडेड दवा नहीं खा पाऊँ.
रोग न हो परिवार में कोई-
सबको पड़े रोग से डरना...

Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
दवा और दाम
संजीव 'सलिल'
*
देव! कभी बीमार न करना...
यह दुनिया है विकट पहेली.
बाधाओं की साँस सहेली.
रहती है गंभीर अधिकतर-
कभी-कभी करती अठखेली.
मुश्किल बहुत ज़िंदगी लेकिन-
सहज हुआ जीते जी मरना...
मर्ज़ दिए तो दवा बनाई.
माना भेजे डॉक्टर भाई.
यह भी तो मानो हे मौला!
रूपया आज हो गया पाई.
थैले में रुपये ले जाएँ-
दवा पड़े जेबों में भरना...
तगड़ी फीस कहाँ से लाऊँ?
कैसे मँहगे टेस्ट कराऊँ??
ओपरेशन फी जान निकले-
ब्रांडेड दवा नहीं खा पाऊँ.
रोग न हो परिवार में कोई-
सबको पड़े रोग से डरना...
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
- prans69@gmail.com
जवाब देंहटाएंसर्वत्र यही स्थिति है.कविता में व्यंग्य खूब उभरा है!
प्राण शर्मा
- sosimadhu@gmail.com
जवाब देंहटाएंआपके पास क्या क्या बहुमूल्य रत्न हैं दादा?
आपकी अमलतास के पेड़ पर प्रतिक्रया हो या व्यंग, कोमल भाव हो या गंभीर विचार आपका प्रत्येक शब्द सीधा दिल से लिखा होता है।
आपकी कविता / कथा पढ़ने को जी चाहता है।
मधु
- binu.bhatnagar@gmail.com
जवाब देंहटाएंबीमार पड़ना बहुत मुश्किल मे डाल देता, व्यंग अच्छा लगा।