कृष्ण भजन:
श्याम सुंदर नन्दलाल
वरिष्ठ कवयित्री व लेखिका श्रीमती शान्ति देवी वर्मा बापू के नेतृत्व में स्वतंत्रता सत्याग्रही बनने के लिए ऑनरेरी मजिस्ट्रेट पद से त्यागपत्र देकर विदेशी वस्त्रों की होली जलानेवाले रायबहादुर माताप्रसाद सिन्हा 'रईस' मैनपुरी उत्तर प्रदेश की ज्येष्ठ पुत्री थीं. उनका विवाह जबलपुर मध्य प्रदेश के स्वतंत्रता सत्याग्रही स्व. ज्वालाप्रसाद वर्मा के छोटे भाई श्री राजबहादुर वर्मा (अब स्व.) सेवानिवृत्त जेल अधीक्षक से हुआ था. उन्होंने अवधी, भोजपुरी मायके से तथा बुन्देली, खड़ी बोली ससुराल से ग्रहण की तथा अपने आस्तिक संस्कारशील स्वभाववश भगवद भजन रचे. वे मानस मंडली में मानस पाठ के समय प्रसंगानुकूल भजन रचकर गया करती थीं. ससुराल में कन्याओं के उच्च अध्ययन की प्रथा न होने पर भी उन्होंने अपनी चारों पुत्रियों को उच्च शिक्षा दिलाकर शिक्षण कर्म में प्रवृत्त कराया तथा सेवाकर्मी पुत्र वधुओं का चयन किया. साहित्यिक संस्था 'अभियान' जबलपुर के माध्यम से रचनाकारों हेतु दिव्य नर्मदा अलंकरण, दिव्य नर्मदा पत्रिका तथा समन्वय प्रकाशन की स्थापना कर संस्कारधानी जबलपुर की साहित्यिक चेतना को गति देने में उन्होंने महती भूमिका निभायी। अपने पुत्र संजीव वर्मा 'सलिल', पुत्री आशा वर्मा तथा पुत्रवधू डॉ. साधना वर्मा को साहित्यिक रचनाकर्म तथा समाज व पर्यावरण सुधार के कार्यक्रमों के माध्यम से सतत देश व समाज के प्रति समर्पित रहने की प्रेरणा उन्होंने दी।
स्व. शांति देवी वर्मा
*
श्याम सुंदर नन्दलाल, अब दरस दिखाइए।
तरस रहे प्राण, इन्हें और न तरसाइए।
त्याग गोकुल वृन्द मथुरा, द्वारिका जा के बसे।
सुध बिसारी काहे हमरी, ऊधो जी बतलाइये।
ज्ञान-ध्यान हम न जानें, नेह के नाते को मानें।
गोपियाँ सारी दुखारी, बांसुरी बजाइए।
टेरती यमुना की लहरें, फूले ना कदंब टेरे।
खो गए गोपाल कहाँ?, दधि-मखन चुराइए।
तन में जब तक शक्ति रहे, मन उन्हीं की भक्ति करे।
जा के ऊधो सांवरे को, हाल सब बताइए।
दूर भी रहें तो नन्द- लाल न बिसराइये।
'शान्ति' है अशांत, दरश दे सुखी बनाइये।
***************
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
salil.sanjiv@gmail.com
0761- 2411131 / 09425183244
श्याम सुंदर नन्दलाल
स्व. श्रीमती शान्ति देवी वर्मा
वरिष्ठ कवयित्री व लेखिका श्रीमती शान्ति देवी वर्मा बापू के नेतृत्व में स्वतंत्रता सत्याग्रही बनने के लिए ऑनरेरी मजिस्ट्रेट पद से त्यागपत्र देकर विदेशी वस्त्रों की होली जलानेवाले रायबहादुर माताप्रसाद सिन्हा 'रईस' मैनपुरी उत्तर प्रदेश की ज्येष्ठ पुत्री थीं. उनका विवाह जबलपुर मध्य प्रदेश के स्वतंत्रता सत्याग्रही स्व. ज्वालाप्रसाद वर्मा के छोटे भाई श्री राजबहादुर वर्मा (अब स्व.) सेवानिवृत्त जेल अधीक्षक से हुआ था. उन्होंने अवधी, भोजपुरी मायके से तथा बुन्देली, खड़ी बोली ससुराल से ग्रहण की तथा अपने आस्तिक संस्कारशील स्वभाववश भगवद भजन रचे. वे मानस मंडली में मानस पाठ के समय प्रसंगानुकूल भजन रचकर गया करती थीं. ससुराल में कन्याओं के उच्च अध्ययन की प्रथा न होने पर भी उन्होंने अपनी चारों पुत्रियों को उच्च शिक्षा दिलाकर शिक्षण कर्म में प्रवृत्त कराया तथा सेवाकर्मी पुत्र वधुओं का चयन किया. साहित्यिक संस्था 'अभियान' जबलपुर के माध्यम से रचनाकारों हेतु दिव्य नर्मदा अलंकरण, दिव्य नर्मदा पत्रिका तथा समन्वय प्रकाशन की स्थापना कर संस्कारधानी जबलपुर की साहित्यिक चेतना को गति देने में उन्होंने महती भूमिका निभायी। अपने पुत्र संजीव वर्मा 'सलिल', पुत्री आशा वर्मा तथा पुत्रवधू डॉ. साधना वर्मा को साहित्यिक रचनाकर्म तथा समाज व पर्यावरण सुधार के कार्यक्रमों के माध्यम से सतत देश व समाज के प्रति समर्पित रहने की प्रेरणा उन्होंने दी।
स्व. शांति देवी वर्मा
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श्याम सुंदर नन्दलाल, अब दरस दिखाइए।
तरस रहे प्राण, इन्हें और न तरसाइए।
त्याग गोकुल वृन्द मथुरा, द्वारिका जा के बसे।
सुध बिसारी काहे हमरी, ऊधो जी बतलाइये।
ज्ञान-ध्यान हम न जानें, नेह के नाते को मानें।
गोपियाँ सारी दुखारी, बांसुरी बजाइए।
टेरती यमुना की लहरें, फूले ना कदंब टेरे।
खो गए गोपाल कहाँ?, दधि-मखन चुराइए।
तन में जब तक शक्ति रहे, मन उन्हीं की भक्ति करे।
जा के ऊधो सांवरे को, हाल सब बताइए।
दूर भी रहें तो नन्द- लाल न बिसराइये।
'शान्ति' है अशांत, दरश दे सुखी बनाइये।
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sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंkavyadhara
आ० आचार्य जी,
कृष्ण-आत्ममयी स्व० शान्ति देवि वर्मा का भक्ति गीत मुग्ध कर गया |
साथ ही यह रहस्य भी खुला कि वे आपकी माँ थीं और काव्य-साधना आपको
विरासत में मिली है | आ० महादेवी वर्मा से आपका पारिवारिक संबंध भी
आपके संस्मरण द्वारा ज्ञात हो चुका है |
स्व० माता जी को सादर नमन | आप जैसे संस्कारिक साधनारत
रचनाकार को अपने समूह पर पा कर हम धन्य हैं|
कमल
- sosimadhu@gmail.com
जवाब देंहटाएंनिशब्द हूँ
मधु
आप भाग्यशाली है...
जवाब देंहटाएंमाता जी की कविता पढ़कर बहुत प्रभावित हुआ. आपका तो पूरा परिवार ही रचनात्मक और आदर्शवादी है, वाह संजीव जी! तभी आपकी लेखनी इतनी सक्रिय है ..
ढेर बधाई और सराहना के साथ,
सादर,
शिशिर
कमल जी, मधु जी, शिशिर जी,
जवाब देंहटाएंआपकी गुणग्राहकता को नमन. सचमुच भाग्यवान हूँ ऐसी विरासत के लिये... खुद को योग्य वारिस नहीं बना सका... प्रयास जारी है. शेष हरि इच्छा...
' यथा माता तथा पुत्र '.........आप उनकी रचनात्मक धरोहर को आगे ले जा रहे हैं !
जवाब देंहटाएंआपके समस्त परिवार को नमन ...! माँ की रचना बहुत प्यारी लगी !
सादर,
दीप्ति