बुधवार, 4 जुलाई 2012

मुक्तिका: सूना-सूना पनघट हैं संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

सूना-सूना पनघट हैं

संजीव 'सलिल'
*




सूना-सूना पनघट हैं, सूखी-सूखी अमराई है।
चौपालों-खलिहानों में, सन्नाटे की पहुनाई है।।

बरगद बब्बा गुजर गए,  पछुआ की सोच विषैली है।
पात झरे पीपल के, पुरखिन पुरवैया पछताई है।।

बदलावों की आँधी में, जड़ उखड़ी जबसे जंगल की।
हत्या हुई पहाड़ों की, नदियों की शामत आई है।।

कोंवेन्ट जा जुही-चमेली-चंपा के पर उग आये।
अपनापन अंगरेजी से है, हिन्दी  मात पराई है।।

भोजपुरी, अवधी, बृज गुमसुम, बुन्देली के फूटे भाग।
छत्तीसगढ़ी, निमाड़ी बिसरी, हाडौती  पछताई है।।

मोदक-भोग न अब लग पाए, चौथ आयी है खाओ केक।
दिया जलाना भूले बच्चे, कैंडल हँस  सुलगाई है।।

श्री गणेश से मूषक बोला, गुड मोर्निंग राइम सुन लो।
'सलिल'' आरती करे कौन? कीर्तन करना रुसवाई है।।

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9 टिप्‍पणियां:

  1. शनिवार 07/07/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. आपके सुझावों का स्वागत है . धन्यवाद!

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  2. - kusumvir@gmail.com

    आदरणीय सलिल जी ,
    बहुत ही सुन्दर कविता लिखी है l
    हार्दिक बधाई l
    सादर l
    कुसुम वीर

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  3. kusumsinha2000@yahoo.com ekavita


    priy sanjiv ji
    aapki vidwata ko mera shat shat naman bahut sundar bahut hi sundar
    kusum

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  4. vijay ✆ द्वारा yahoogroups.comशुक्रवार, जुलाई 06, 2012 7:18:00 pm

    vijay ✆ द्वारा yahoogroups.com

    kavyadhara


    आ० ’सलिल’ जी,

    मुक्तिका अच्छी लगी । विशेषकर ..

    सूना-सूना पनघट हैं, सूखी-सूखी अमराई है।

    चौपालों-खलिहानों में, सन्नाटे की पहुनाई है।।

    साधुवाद,

    विजय

    जवाब देंहटाएं
  5. vijay :



    आ० ’सलिल’ जी,

    मुक्तिका अच्छी लगी । विशेषकर ..

    सूना-सूना पनघट हैं, सूखी-सूखी अमराई है।

    चौपालों-खलिहानों में, सन्नाटे की पहुनाई है।।

    साधुवाद,

    विजय

    जवाब देंहटाएं
  6. sn Sharma ✆ ahutee@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


    आ० आचार्य जी,
    पकृति से दूर होते परिवेश का सार्थक शब्द-चित्र | साधुवाद !
    विशेष-

    बदलावों की आँधी में, जड़ उखड़ी जबसे जंगल की।

    हत्या हुई पहाड़ों की, नदियों की शामत आई है।।

    सादर ,

    कमल

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