गुरुवार, 12 जुलाई 2012

दोहा सलिला: --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला: 

संजीव 'सलिल'

*
कथ्य, भाव, रस, शिल्प, लय, साधें कवि गुणवान.
कम न अधिक कोई तनिक, मिल कविता की जान..
*
मेघदूत के पत्र को, सके न अब तक बाँच.
पानी रहा न आँख में, किससे बोलें साँच..

ऋतुओं का आनंद लें, बाकी नहीं शऊर.
भवनों में घुस कोसते. मौसम को भरपूर..

पावस ठंडी ग्रीष्म के. फूट गये हैं भाग.
मनुज सिकोड़े नाक-भौं, कहीं नहीं अनुराग..

मन भाये हेमंत जब, प्यारा लगे बसंत.
मिले शिशिर से जो गले, उसको कहिये संत..

पौधों का रोपण करे, तरु का करे बचाव.
भू गिरि नद से खेलता, ऋषि रख बालक-भाव..

मुनि-मन कलरव सुन रचे, कलकल ध्वनिमय मंत्र.
सुन-गा किलकिल दूर हो, विहँसे प्रकृति-तंत्र..

पत्थर खा फल-फूल दे, हवा शुद्ध कर छाँव.
जो तरु सम वह देव है, शीश झुका छू पाँव..

तरु गिरि नद भू बैल के, बौरा-गौरा प्राण .
अमृत-गरल समभाव से, पचा हुए सम्प्राण..

सिया भूमि श्री राम नभ, लखन अग्नि का ताप.
भरत सलिल शत्रुघ्न हैं, वायु- जानिए आप..

नाद-थाप राधा-किशन, ग्वाल-बाल स्वर-राग.
नंद छंद, रस देवकी, जसुदा लय सुन जाग..

वृक्ष काट, गिरि खोदकर, पाट रहे तालाब.
भू कब्जाकर बेचते, दानव-दैत्य ख़राब..

पवन, धूप, भू, वृक्ष, जल, पाये हैं बिन मोल.
क्रय-विक्रय करते असुर, ओढ़े मानव खोल..

कलकल जिनका प्राण है, कलरव जिनकी जान.
वे किन्नर गुणवान हैं, गा-नाचें रस-खान..

वृक्षमित्र वानर करें, उछल-कूद दिन-रात.
हरा-भरा रख प्रकृति को, पूजें कह पितु-मात..

ऋक्ष वृक्ष-वन में बसें, करें मस्त मधुपान.
जो उलूक वे तिमिर में, देख सकें सच मान..

रहते भू की कोख में, नाग न छेड़ें आप.
क्रुद्ध हुए तो शांति तज, गरल उगल दें शाप..

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10 टिप्‍पणियां:

  1. SURENDRA KUMAR SHUKLA 'BHRAMAR'

    पावस ठंडी ग्रीष्म के. फूट गये हैं भाग.
    मनुज सिकोड़े नाक-भौं, कहीं नहीं अनुराग..

    आदरणीय सलिल जी बहुत सुन्दर ..शिक्षा प्रद दोहे ..आप के दोहों की प्रस्तुति ही निराली होती है बधाई ..भ्रमर

    जवाब देंहटाएं
  2. कुमार गौरव अजीतेन्दुगुरुवार, जुलाई 12, 2012 8:09:00 pm

    कुमार गौरव अजीतेन्दु

    दोहे की रसमाधुरी, का जो कर ले पान |
    हो के मस्त मगन करे, बस उसका गुणगान ||

    आदरणीय सलिल सर को बधाई...

    Comment by Rekha Joshi on July 6, 2012 at 5:19pm
    Delete Comment

    आदरणीय संजीव जी ,
    मन भाये हेमंत जब, प्यारा लगे बसंत.
    मिले शिशिर से जो गले, उसको कहिये संत ,बहुत बढ़िया काव्य रचना ,बधाई

    Comment by Dr.Prachi Singh on July 6, 2012 at 12:56pm
    Delete Comment
    आदरणीय संजीव सलिल जी,
    बहुत बहुत सुन्दर, मधुर, दिव्य, निर्मल दोहों की रचना की आपने, कभी मन प्रकृति के विविध आयामों में, कभी ईश्वर में, कभी सद्गुणों की गूढ़ महिमा में डूब गया...
    और फिर बाहर निकलने का मन नहीं किया..
    इन दो दोहों के लिए विशेष हार्दिक बधाई स्वीकार करें..
    पत्थर खा फल-फूल दे, हवा शुद्ध कर छाँव.
    जो तरु सम वह देव है, शीश झुका छू पाँव..
    सिया भूमि श्री राम नभ, लखन अग्नि का ताप.
    भरत सलिल शत्रुघ्न हैं, वायु- जानिए आप..
    बहुत बहुत सुन्दर दोहा रचना.
    आपको साधुवाद.

    Comment by sangeeta swarup on July 6, 2012 at 10:58am
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    पवन, धूप, भू, वृक्ष, जल, पाये हैं बिन मोल.
    क्रय-विक्रय करते असुर, ओढ़े मानव खोल..

    हर दोहा अच्छी सीख देता हुआ ....

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  3. आचार्य ’सलिल’ जी,
    अति सुंदर!
    तरु को आप ने देव सम कहा है। संत तुलसी दास जी ने उन को संत कहा है।
    "तुलसी संत सुअंब तरु फुलहिं फलहिं परहेत
    इततें ये पाहन हनत उततें वे फल देत"
    सस्नेह
    सीताराम चंदावरकर

    जवाब देंहटाएं
  4. आचार्य ’सलिल’ जी,
    अति सुंदर!
    तरु को आप ने देव सम कहा है। संत तुलसी दास जी ने उन को संत कहा है।
    "तुलसी संत सुअंब तरु फुलहिं फलहिं परहेत
    इततें ये पाहन हनत उततें वे फल देत"
    सस्नेह
    सीताराम चंदावरकर

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  5. santosh.bhauwala@gmail.com द्वारा yahoogroups.com ekavita


    आदरणीय आचार्य जी , अद्वितीय दोहे !! नमन !!
    सादर संतोष भाऊवाला

    जवाब देंहटाएं
  6. vijay ✆ द्वारा yahoogroups.comशनिवार, जुलाई 14, 2012 9:46:00 am

    vijay ✆ द्वारा yahoogroups.com

    kavyadhara


    सभी दोहे अच्छे लगे ।

    कथ्य, भाव, रस, शिल्प, लय,
    साधें कवि गुणवान.
    कम न अधिक कोई तनिक,
    मिल कविता की जान..

    एक दम सच है

    विजय

    जवाब देंहटाएं
  7. Mridul Kirti ✆

    पावन, धूप, भू, वृक्ष, जल , पाए हैं बिन मोल,
    क्रय - विक्रय करते असुर , ओढ़े मानव खोल.

    सार्थक , सटीक और सामयिक दोहा है, जिसे नारे की तरह प्रयुक्त किया जा सकता है.
    खुरच-खुरच कर गिरि खा गए,
    किरच-किरच कर धरती.
    बूँद-बूँद तृष्णा ने पी ली,
    गंगा जमुन सुरसती
    डॉ.मृदुल कीर्ति

    जवाब देंहटाएं
  8. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.comशनिवार, जुलाई 14, 2012 11:00:00 am

    sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com

    kavyadhara


    आ० आचार्य जी ,
    दोहा सलिला पढ़ कर मन मुग्ध हुआ | आपने कुछ शब्दों को Underline किया है
    उसका क्या तात्पर्य है ? आज ही मैंने भी कुछ दोहे पकाशित करने का साहस किया है
    उन पर आपकी राय की प्रतीक्षा रहेगी | त्रुटियों को अवश्य इंगित कीजिए ,आभारी रहूँगा|
    सादर
    कमल

    जवाब देंहटाएं
  9. sanjiv verma salil ✆

    12 जुलाई (2 दिनों पहले)

    kavyadhara
    आदरणीय!
    वन्दे मातरम.
    आपका आशीष पाकर कृतार्थ हुआ. रेखांकित शब्दों को दोहे के माध्यम से एक नये रूप में परिभाषित करने का प्रयास है. ये शब्द विविध सामाजिक वर्ग या व्यक्ति हैं जिन्हें रूढ़ मन लिया ज्ञ है यथा वानर, भालू, उलूक (उल्लू). दोहों में इन्हें पशु-पक्षी नहीं मानव का एक वर्ग कहा गया है. संभवतः यह प्रथम मौलिक प्रयास है.

    जवाब देंहटाएं
  10. deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.comशनिवार, जुलाई 14, 2012 11:01:00 am

    deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com

    kavyadhara


    नि:संदेह अत्युत्तम !
    साधुवाद !
    सादर,
    दीप्ति

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